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जीवनवृत्त व्यवस्था दुस्साध्य कार्य था। कन्नड़ एक कटिन लिपि है, द्राविड़ परिवार की सभी लिपियाँ कटिन हैं | उसको किसी की महायता के विना सीखना और भी कठिन था पर उन्होंने उसका अभ्याम कर लिया और साधारण अभ्यारा नहीं - वे कन्नड़ भाषा के ग्रन्धों पर व्याख्यान करते थे एवं उन्हें कन्नड़ लिपि में लिख भी लेते थे । अ० रायमल ने लिखा है, "दक्षिरण देस तूं पांच-सात और ग्रंथ ताड़पत्रां विपै कर्णाटी लिपि में लिख्या इहां पधारे हैं, नाकं मलजी बांचे है, बाका यथार्थ व्याख्यान कर है बा कर्णाटी लिपि मैं लिग्वि लेहैं।" व्यवसाय
उनकी आर्थिक स्थिति साधारण थी। उनको अपनी आजीविका के लिये जयपुर छोड़कर सिंघागा जाना पड़ा था। सिंघारगा जयपुर के पश्चिम में करीब १५० किलोमीटर दूर वर्तमान खेतड़ी प्रोजेक्ट के पास स्थित है। वहाँ भी उनका कोई स्वतंत्र व्यवसाय नहीं था। वे दिल्ली के एक साहुकार के यहाँ कार्य करते थे और निश्चित रूप से वे वहां चार-पांच वर्ष से कम नहीं रहे।
उनका व्यवसाय और आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में कुछ भ्रान्तियाँ प्रचलित है । कहा जाता है कि वे आर्थिक दृष्टि से बहुत सम्पन्न थे । उनको पढ़ाने के लिए बनारम से विद्वान् बुलाया गया था। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके अध्ययन की व्यवस्था अमरचंदजी दीवान ने की थी। दीवान अमरचंदजी के काग्गा उनको राज्य में सम्माननीय पद प्राप्त था । इस राजकर्मचारी पद से राज्य और प्रजा के हित के उन्होंने अनेक कार्य किया। उनका प्रखर पाण्डित्य
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1 इ० वि० पत्रिका. परिशिष्ट ? २ पा से खावाटी विर्ष सिंघाणां नन सहा टोडरमल्लजी एक दिनी का बड़ा राहकार राधिमी ताव सगी' कर्मकार्य के प्रथि वहां रहै, तहां हम गए पर टोडरमलजी सं मिले।" |
.. जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १ १ सम्मति सन्देश : टोडरमल विशेषांक, वर्ष १० अंक ५, पृ० ७२ * हि ना० सं• इति०, १८५, १८६ २ (क) वही, १८८ (ख) रहस्यपूर्ण चिट्ठी की भूमिका, ९-१०