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________________ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तृत्व अलंकार, काव्य आदि विषय भी पढ़ाते थे । अतः संभावना यही है कि उनके शिक्षागुरु बाबा बंशीधर ही रहे होंगे । उक्त सैलियों में तु निर्वाचित मेला कोई नहीं होता था । प्रायः तत्त्वप्रेमी बराबरी के रूप में रहते थे, किन्तु विद्वान् और प्रामाणिक बक्ता के रूप में कुछ व्यक्तित्व स्वयं उभर आते थे और उनके निर्देश में गोष्ठियाँ संचालित होने लगती थीं । अतः नेतृत्व या गुरु-शिष्य परम्परा सम्बन्धी कोई उल्लेख मिलना संभव नहीं है । जो भी कथन मिलते हैं वे सामान्य रूप से सैलियों के मिलते हैं । यहीं कारण है कि पं० टोडरमल ने व्यक्ति विशेष का गुरु रूप में उल्लेख नहीं किया तथा उनसे ज्ञान लाभ लेने वालों ने भी उनका सीधे गुरु रूप में स्मरण न कर सैली में प्रमुख वक्ता एवं लेखक के रूप में उल्लेख किया है तथा सैली में आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के उल्लेख किए हैं । 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषा वज्रनिका प्रशस्ति' में पं० सदासुखदास कासलीवाल लिखते हैं : ६० गोत कासलीवाल है नाम सदासुख जास | सेली तेरापंथ में करें जुज्ञान अभ्यास ||११३८ गूढ़ तत्वों के तो पं० टोडरमल स्वयंबुद्ध ज्ञाता थे । 'लब्धिसार' व 'क्षपणासार' की संदृष्टियाँ आरम्भ करते हुए वे स्वयं लिखते हैं, "शास्त्र विषै लिख्या नाहीं और बताने वाला मिल्या नाहीं ।" कन्नड़ भाषा और लिपि का ज्ञान एवं अभ्यास भी उन्होंने स्वयं किया । उसमें प्रध्यापकों के सहयोग की सम्भावना भी नहीं की जा सकती है क्योंकि उस समय उत्तर भारत में कन्नड़ के अध्यापन की १ ( क ) "अर एक बंसीधर किंचित् संजम का धारक विशेष व्याकरणादि जैनमत के शास्त्रों का पाठी, सौ पचास लड़का- पुरुष वायां जानवें व्याकरण, छन्द, अलंकार काव्य चरचा पढ़े तामूं भिने ।" - जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १ (ख) "अर अब वर्तमान काल विषे बाबा बंसीधरजी व मलजी साहिब ये संलीनि वि मुख्य हैं ।" - टो० ज० रुमा०, ४
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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