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________________ লীল उपनिषद् काल से ही भारतवर्ष में इस तरह की परिषदों या । स्वाध्याय-मण्डलों का उल्लेख मिलता है। यह आलोच्य युग की सैली भी उन्हीं का विकसित और परिवद्धित रूप जान पड़ता है। पंडितप्रवर जयचन्द छाबड़ा ने 'सर्वार्थसिद्धि व नका प्रशस्ति' में जयपुर की तेरापंथी सैली में शिक्षित होने की चर्चा इस प्रकार की है : "निमित्त पाय जयपुर में प्राय, बड़ी जु सैली देखी भाय । गुरणी लोक साधरमी भले, ज्ञानी पंडित बहुते मिले ।। पहले थे बंशीधर नाम, धरै प्रभावन-भाव सुठाम | 'टोडरमल' पंडित मतिखरी, 'गोम्मटसार' वचनिका करी ।। ताकी महिमा सब जन करें, बांच-पड़े बुद्धि बिस्तरें । 'दौलतराम' मुणी अधिकाय, पंडितराय राज में जाय ।। ताकी बुद्धि लस सब खरी, तीन पुरान बनिका करी । 'रायमल्ल' त्यागी गृहबास, 'महाराम' व्रत शील निवास ।। मैं हूँ इनकी संगति ठानि, बुद्धि सारू जिनवारणी जानि । शैली तेरापंथ सुपंथ, तामें बड़े गुणी गुन-ग्रन्ध । तिनकी संगति में कछु बोध, पायो मै अध्यातम सोध ।। पंडित टोडरमल ने भी जयपुर की सैली में ही शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने बाद में उक्त संली का सफल संचालन भी किया। उनके पूर्व बाबा बंशीधरजी उक्त संली के संचालक थे । वे पूरुषों, महिलाओं और बच्चों को धामिक शिक्षा के साथ-साथ न्याय, व्याकरण, छंद, , "इन लोगों ने अपने विचारों के अनुयावी राष्ट्रों में परिषदें स्थापित की थीं और व्रात्य-संघों के सदृश ही इनके भी स्वाध्याय-मण्डल थे, जो वाल्य-संघों से पीछे के नहीं, अपितु पहने' के थे।" - काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध, ५३
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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