SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व उनके नाम से एक पंथ भी चला जो गुमान-पंथ के नाम से जाना जाता है । शिक्षा और शिक्षागुरु वे मेधावी और प्रतिभासम्पन्न थे एवं सदा अध्ययन, मनन, चितन में अपना समय सार्थक करते थे। थोड़ा बहुत समय खाने-खेलने में गया होगा, उसके लिये उन्होंने स्वयं खेद व्यक्त किया है । उनकी शिक्षा जयपुर में ही हुई। स्वयं उन्होंने अपने गुरु का उल्लेख कहीं भी नहीं किया है । अन्यत्र भी स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं हैं। तत्कालीन समाज में धार्मिक अध्ययन के लिए आज के समान सुव्यवस्थित विद्यालय, महाविद्यालय नहीं चलते थे । लोग स्वयं ही 'सैलियों के माध्यम से तत्त्वज्ञान प्राप्त करते थे । तत्कालीन रामाज में जो आध्यात्मिक चर्चा करने वाली दैनिक गोप्टियां होती थी, उन्हें सैली कहा जाता था। ये सैलियाँ सम्पूर्ण भारतवर्ष में यत्रतत्र थीं। महाकवि बनारसीदास भी आगरा की एक सैली में ही शिक्षित हए थे। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल लिखते हैं : "चीकानेर जैनलेख-संग्रह में अध्यात्मी सम्प्रदाय का उल्लेख भी ध्यान देने योग्य है। बह आगरे के ज्ञानियों की मण्डली थी, जिसे सैली वाहते थे। ज्ञात होता है कि अकबर की 'दीने-इलाही' प्रवृत्ति भी इसी प्रकार की प्राध्यात्मिक खोज का परिणाम थी। बनारस में भी आध्यात्मियों की एक सैली या मण्डली थी। किसी समय राजा टोडरमल के पुत्र गोवर्धनदास इसके मुखिया थे।" ' (क) "तेरापंथिन में भी बररा पच्चीसेक सं गुमानीराम भेद थाप्या है।" -३० वि०, १२८ (ख) हि० म०वि०, १५% २ "ऐसौ यह मानुष पर्याय, बंधत भयो निज काल गमाय ।" -स.चं० प्र० ३ (क) अ० क भूमिका, २५ (ख) जैन शोध और समीक्षा, १५१ ४ मध्यकालीन नगरों का सांस्कृतिक अध्ययन : जैन संदेश शोधांक, जून १६५७
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy