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जीवनवृत्त
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जिसे भौंसा व बड़जात्या भी कहते हैं । इनके वंशज 'ढौलाका' भी कहलाते थे । वे विवाहित थे, लेकिन उनकी पत्नी व ससुराल पक्ष वालों का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। उनके दो पुत्र हरिचंद और गुमानीराम गुमानीराम उनके ही समान उच्चकोटि के विद्वान् और प्रभावक आध्यात्मिक प्रवक्ता थे । उनके पास बड़े-बड़े विद्वान् भी तत्व का रहस्य समझने प्राते थे । घुमक्कड़ विद्वान् पंडित देवीदास गोधा ने 'सिद्धान्तसार टीका प्रशस्ति' में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है । पंडित टोडरमल की मृत्यु के उपरान्त वे पंडित टोडरमल द्वारा संचालित धार्मिक क्रान्ति के सूत्रधार रहे 1
जैसे - वाणी की। इसी से मिलता-जुलता विवरण पंडित लक्ष्मीचन्दजी लश्कर वालों ने अपने लक्ष्मी विलास में दिया है । वीरवाणी (सन् १९४७-४८ ) में श्री राजमल संधी द्वारा लिखित 'खण्डेलवाल जाति की उत्पत्ति का इतिहास' शीर्षक एक लेखमाला क्रमश: कई अंकों में प्रकाशित हुई है, उसमें भी इससे मिलता-जुलता वर्णन है ।
विभिन्न जातियों की वंशावली को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग जातियों के अपने भाट, पाटिया, पंडे आदि होते हैं। खण्डेलवाल जाति के भी अपने भाट है । उनके अनुसार गोदीका, भौंसा, बड़जात्या ये तीनों गोत्र एक ही हैं। इनमें आपस में शादी-विवाह भी नहीं होते हैं। इन तीनों गोत्रों के एक ही होने का दिलचस्प विवरण इस प्रकार है :
खण्डेल गिरि के राजा का गोत्र 'शाह' और उनके भाई का गोत्र 'भाई शाह' रखा गया था, जो कि बिगड़ते-बिगड़ते 'भावसा', फिर 'भोसा' हो गया। भाँसा को लोग भैसा कहकर मजाक उड़ाने लगे तब सब ने निर्णय किया कि ये बड़ी जाति के हैं, भैंसा शब्द अच्छा नहीं लगता, अतः उनका गोत्र 'बड़जात्या कर दिया जाय। तब वे बड़जात्या कहलाने लगे । उनमें से कोई किसी की मोद चला गया तो गोद जाने वाले को 'गोबीका' कहने लगे ।
२ ढोलक बैंक है, गोत्र नहीं ।
......तथा लिनिके पीछे टोडरमलजी के बड़े पुत्र हरीचंदजी तिमिते छोटे गुमानीरामजी महाबुद्धिमान वक्ता के लक्षण कूं घारै तिनिके पास फिल् रहस्य सुनि करि कछू जानपना भया । "