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________________ पंडित टोवरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व एकदम मौन हैं । वे राजकर्मचारी थे', अतः उन्होंने राजकीय अविवेक से हुई उनकी असामयिक मृत्यू के सम्बन्ध में कुछ भी लिखना ठीक न समझा होगा क्योंकि यह तो संभव नहीं है कि उन्हें उक्त काण्ड की जानकारी ही न हो, जब कि वि० सं० १८२७ में ही पंडिल बस्त्रतराम शाह ने 'बुद्धि विलास समाप्त किया था और उन्होंने उसमें पंडित टोडरमल को दिये गए मृत्युदण्ड का विस्तृत वर्णन किया है । बखतराम शाह के अनुमार कुछ मतांध लोगों द्वारा लगाये गए शिवपिण्डी को उखाड़ने के आरोप के संदर्भ में राजा द्वारा सभी श्रावकों को कैद कर लिया गया था और तेरापंथियों के गुरु, महान धर्मात्मा, महापुरुष, पंडित टोडरमल को मृत्युदण्ड दिया गया था। दृष्टों के भड़काने में लाकर राजा ने उन्हें मात्र प्राणदण्ड ही नहीं दिया बल्कि गंदगी में गड़वा दिया था । यह भी कहा जाता है कि उन्हें हाथी के पैर के नीचे कुचला कर मारा गया था । विक्रम की उन्नीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जयपुर में तीन बार साम्प्रदायिक उपद्रव हुए । प्रथम विक्रम संवत् १८१८ में व तृतीय ५ "भृत्य भूप को कुल वणिक, जाको बसयो धाम ।" -पु० भा० टी प्र. २ "तब ब्राह्मगानु मतो यह किया, लिव उठांन को टौंना दियो । तामै सबै श्रावगी कैद, करिके दंड किए नुप फैद' ।।१३०३॥ मक तेरह पंथिनु मैं ध्रमी, हो तो महा जोग्य साहिमी।। कहै खलनि के नृप रिसि नाहि, हति के धर्यो यमुचि थान वाहि ।।१३०४।।" - बु० वि० पाठान्तर :- १३०३-(१) तामैं सब श्रावनी केंद, इंड फिगो नप करिक फेद । १३०४. (१) गुरु (२) की (३) भ्रमी (४) टोडरमल्ल नाम साहिमी (५) ताहि भूप मार्यो पल मांहि गाइ गौ मद्धि गंदगी तांहि ॥ 3 (क) वीरवाशी : टोडरमलांक, २८५-२८६ (ख) हि. सा. द्वि० ख०, ५७०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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