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________________ जीवनवृत्त वि० सं० १८२६ में हुआ'। द्वितीय इन दोनों के बीच विक्रम संवत् १८९३ या १८२४ में हुआ था। इसके तिथि सम्बन्धी उल्लेख नहीं मिलते हैं। पंडित टोडरमल का शोचनीय व दुःखद अन्त द्वितीय उपद्रव का ही परिणाम था। इतना तो निश्चित है कि यह उपद्रव राजा माधोसिंह के राज्यकाल में हुआ था । राजा माधोसिंह की मृत्यु तिमि चा ३ ) वर ४ है । उक्त तिथि के बाद पंडितजी की विद्यमानता स्वीकार नहीं की जा सकती है । वि० संवत् १८२१ के माघ माह में होने वाले इन्द्रध्वज विधान महोत्सव में पंडित टोडरमलजी उपस्थित थे। 1 अतः वि० संवत् १८२१ के मात्र माह और वि० संवत् १८२४ के चैत्र माह के बीच किसी समय पंडितजी की मृत्यु हुई होगी। जयपुर के सांगाकों के मंदिर में केशरीसिंह पाटनी सांगाकों का एक हस्तलिखित गुटका है, जिसमें निम्नानुसार उल्लेख मिलता है : "मिती कार्तिक सुदी ५ ने (को) महादेव की पिडि सहरमांहीं कछु अमारगी उपाडि नाखि तीह परि राजा रोप करि मुरावग धरम्या परि दंड नाख्यो ।” उक्त उल्लेख के आधार पर उनकी मृत्यु वि० संवत् १८२२-२३ या २४ की कार्तिक सुदी पंचमी के आसपास संभव हो सकती है । पर 'ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन, बम्बई की तृतीय वार्षिक रिपोर्ट और ग्रन्थसूची तथा प्रशस्ति संग्रह' पृ०७४-७६ पर मुदित है कि त्रिलोकसार की एक प्रति श्रावण कृधरणा ४ वि० संवत् १८२३ की लिखी हुई है (इति श्री त्रिलोकसार भाषा टीका पीठबंध सम्पूर्ण -- . . .... - ---- -.. ' देखिये प्रस्तुत ग्रंथ, ३४-३५ ५ वीरवारणी : टोडरमलांक, २८५ 3 राजस्थान का इतिहास, ६५० ४ इ० वि० पत्रिका, परिशिष्ट १ ५ वीरवारणी : टोडरमलांक, २८५
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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