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जीवनवृत्त
ने अपने मन की पुष्टि में कोई विचारणीय प्रमाण प्रस्तुन नहीं किए हैं । पं० परमानन्द शास्त्री' और पं० मिलापचंद कटारिया का कहना है कि पंडितजी का जन्म हर हालत में वि० सं० १७६७ से १५-२० वर्ष पूर्व होना चाहिए । ___पंडित टोडरमल ने अपनी जन्मतिथि के बारे में कहीं कुछ नहीं लिखा है, किन्तु गोम्मटसार पूजा की जयमाल में राजा जयसिंह के नाम का उल्लेख अवश्य है तथा गोम्मटसार आदि ग्रन्थों की भाषाटीका बन जाने का भी संकेत है । उक्त प्राधार पर इस रचना एवं भापाटीकायों को सवाई जयसिंह के राज्यकाल में बिनित मानने पर वे रचनाएँ वि० सं० १८०० के पूर्व की माननी होंगी, क्योंकि सवाई जयसिंह का राज्यकाल वि० सं० १८०० तक ही है। यदि उक्त तथ्य को सही माना जाय तो पंडित टोडरमल का जन्म इससे २५-३० वर्ष पूर्व अवश्य मानना होगा, क्योंकि २५-३० वर्ष की उम्र के पूर्व गोम्मदसारादि ग्रन्थों की भाषादीका बना पाना संभव नहीं लगता।
उक्त भाषाटीकाओं को वि०सं० १८०० से पूर्व को मानने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि 'सम्यकज्ञानचंद्रिका प्रशस्ति' में उक्त ग्रन्थों की भाषाटीका वि० सं० १८१८ में समाप्त होने का स्पष्ट उल्लेख है । अतः यह निश्चित है कि गोम्मटसार पूजा वि० सं० १८१८ के बाद की रचना है तथा उक्त पूजा की जयमाल एवं उसमें राजा जयसिंह का उल्लेख प्रामाणिक नहीं लगते। इम पर विस्तृत विचार तीसरे अध्याय में उक्त कृति के अनुशीलन में किया जायगा। ' सन्मति सन्देश : टोडरमल विशेयांवा, ३ २ सन्मति सन्देश : दिसम्बर १६६८, पृ० ५ 1 यह दरगत भये परम्पराम, तिहि मार्ग रची टीका बनाय । भापा रचि टोडरमल्ल' शुद्ध, सुनि रायमल्ल जैनी विशुद्ध ।।१०।। जयपुर जयसिंह महीपराज, तह जिनधर्मी जन बहुत भाज । यह धनी विशद जयमाल जैन, पहिरं परमानंद भव्य चंन ।।११ * संवत्सर अष्टादश युक्त, अष्टादशशत लौकिक युक्त । माघशुक्ल पंचमि दिन होत, भयो ग्रन्थ पूरन उद्योत ।।
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