________________
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तस्त्र ___दित जैन बड़ा मंदिर तेरापंथियान, जयपुर में प्राप्त भूधरदास के चर्चा-समाधान नामक हस्तलिखित ग्रंथ पर आसोज कृष्णा विक्रम संवत् १८१५ के एक उल्लेख मे पता चलता है कि वि० सं० १८१५ के पूर्व पंडित टोडरमल उक्त ग्रन्थों की साठ हजार एनोक प्रमाण टीका लिख चुके थे एवं महान विद्वान् के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। ऐसा लगता है कि वि० संवत् १८१५ व १८१८ के बीच के तीन वर्ष संशोधनादि कार्य में लगे होंगे। ब्र० रायमल के अनुसार उक्त टीकात्रों को बनाने में तीन वर्ष का समय लगा। इससे सिद्ध होता है कि वि० सं० १८१२ में इन महान ग्रन्थों की टीना का कार्य प्रारम्भ हो गया था।
प्र० राबमल व्यक्तिगत रूप से पाइत टोडरमल के सम्पर्क में सिंघाणा में ही प्राए किन्नु पंडितजी की विद्वत्ता व कीति रो वे कम से कम उससे ३-४ वर्ष पहले परिचित हो चुके थे। वे लिखते हैं :
पीछे केताइक दिन रहि टोइरमल जैपुर के साहूकार का पुत्र ताकै विशेष ज्ञान जानि वासू मिलने के अथि जैपुर नगरि आए । सो इहां बाकू नहीं पाया । अर एक बंसीधर....."ताएं मिले । पीछे वान छोड़ि प्रागरै गए । उहां स्याहगंज विर्ष भूधरमल्ल साहूकार...... यासं मिलि फेरि जैपुर पाछा पाए। पीछे से खावाटी विष सिंघांग ना तहां टोडरमल्लजी एक दिली का बड़ा साहूकार साधर्मी ताके समीप कर्मकार्य के अथि वहां रहै, तहां हम गए अर टोडरमलजी सूं मिले, नाना प्रकार के प्रश्न कीए । ताका उत्तर एक गोमट्टसार नामा ग्रंथ की साखि सं देते भए । ता ग्रंथ की महिमां हम पूर्वे सूरणी थी तासं विशेष देस्त्री। अर टोडरमल्लजी का ज्ञान की महिमा अद्भुत देखी। पीछे उनसूं हम कही - तुम्हार या ग्रंथां का परचे निर्मल भया है । तुम करि याकी भाषा टीका होय तो घणो जीवां का कल्याण होइ......३।"
--.
-
-.
१ जीवा पत्रिका, परिशिष्ट १ २ वहीं
३ वही