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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व वि० सं० १८१८ में जिस समय पानीपत के मैदान में मराठा और अफगानों के युद्ध में दिल्ली की टूटती बादशाहत का भाग्य निर्णय हो रहा था, उस समय गाजा माधोसिंह का भूहलगा पुरोहित श्याम तिवाड़ी जयपुर के जैनियों को साम्प्रदायिक द्वेष की ज्वाला में भून रहा था । जैन स्रोतों के अनुसार लगभग अठारह माह तक यह 'श्याम गर्दी' चली, जिसके बाद राजा को सुमति पाई, पश्चाताप हुआ | श्याम तिवाड़ी को अपमानित कर राज्य से निर्वासित किया गया । जैनियों के समाधान के लिए राज्य की ओर से पूरे प्रयत्न किये गए, उनकी स्थिति पूर्ववत् बना देने का प्रयास किया गया।
___ इस घटना का विवरण जयपुर के तत्कालीन इतिहास में नहीं मिलता। ऐसे बिवरण की अपेक्षा उस समय के इतिहास से की भी नहीं जा सकती। फिर भी एक प्रशासकीय आदेशपत्र में जैनियों की क्षतिपूर्ति करने और उनके प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण अपनाने का आदेश दिया गया। इससे उक्त घटना की ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। यह प्रादेश विक्रम संवत् १८१६ मार्गशीर्ष कृष्णा २
१ संवत् अट्टारह से गये, ऊपरि जकं अठारह भये । तब इक भयो तिवाड़ी श्याम, डिभी अति पाखंड को धाम 11१२८६।। करि प्रयोग राजा घसि बियो, माधवेश नप गुरु पद दियो ।। १२६१॥ दिन कितेक बोते हैं जब, महा उपद्रव कीन्हो त ।।१२६२।।
- बु. वि० २ "संवत् १८१७ के सालि यमाढ़ के महैने एक स्यामराम ब्राह्मण बाके मत का पक्षी पापमुर्ति उत्पन्न भया । राजा माधवसंह का गुर ठाहरपा, ताकरि राजानं बसि कीया पीछ । जिन धर्म सं द्रोह करि या नन के बा सर्व ढुंढाड देश का जिन मंदिर तिनका विधम' कीया । सत्र कू वैसन (वैष्णन) करने का उपाय वीया । ताकरि लाखां जीयां नैं महा घोरामघोर दुख हवा घर महापाप का बंध भया सो एह उपद्रव वरस ड्योढ पर्यत रह्मा ।"
- जीवन पमिका, परिशिष्ट । 3 अकस्मात कोप्यो नृप भारो, दियो दुपहरा देश निकारो। दुपटा घोति धरे द्विज निकस्यो, तिम जुत पापनि लस्त्रि जग विगस्यो ।।१२६६।।
-बु० वि०