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________________ राजनोलिक परिस्थिति सिद्धान्तों एवं इतिहास का अच्छा ज्ञान था और उनकी विद्या-बुद्धि के कारण भी वह जैनियों का काफी सम्मान एवं प्रादर करता था। इम राजा की ज्योतिष-विषयक गवेषणात्रों में भी उसका प्रधान सहायका विद्याधर नामक जैन विद्वान था। सवाई जर्यामह के पश्चात् उसका बड़ा पुत्र ईश्वरसिंह (शासनकाल-१७४४-१७५० ई०) राजा हुमा । उन दिनों जयपुर के राजकीय गगन में गृहकलह की काली घटा छाई ठई थी। यद्यपि ईश्वरसिंह एक सज्जन राजा था तथापि गृहशत्रुनों के कुचक में उसका अन्न हुआ और उसका अनुज माधोसिंह (शासनकाल-१७५१-१७६७ ई.) राजा बना। यद्यपि जयसिंह के राज्यकाल के समान साधांसिंह के राज्यकाल में भी शासन-व्यवस्था में जैनियों का महत्त्वपूरर्ग योगदान एवं प्रभाव रहा, शासन के उच्चपदों पर अधिकांश जैन थे, जैनियों की हिसात्मक संस्कृति जयपुर नगर में स्पष्ट प्रतिविम्बित थी तथा शासकीय यादेश से जीवहिसा, वेश्यावृत्ति एवं मद्यपान निषिद्ध थे तथापि माम्प्रदायिक उपद्रवों की दृष्टि से माधोमिह का शासनकाल अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण रहा। इसमें जैनियों को दो बार साम्प्रदायिक विद्वेष का शिकार होना पड़ा। अपने समस्त उदार आश्वासना के बावजूद भी शासन उन्हें सुरक्षा और न्याय देने में असमर्थ रहा। १ पनल्स एण्ड एन्टीक्विटीज अफ राजस्थान, २६७ २ राजस्थान का इतिहास, ६५० । वही ४ "और ई नग्र विर्ष सात विसन का प्रभाव है । भावार्थ-ई मग विर्ष कलाल कसाई वेश्या न पाई है। पर जीव हिसा की भी मनाई है । राजा का नाम माधवसिंह है। ताके राज विषं वर्तमान एते कुविसन दरबार की आज्ञात न.पाईए है । पर जैनी लोग वा समुह बरी है । दरवार के मुतसद्दी सर्व जैनी है । और साहूकार लोग सर्व जनी है । यद्यपि और भी है परि गौणता रूप है। मुरूपता रूप नाही। छह सात वा आठ दस हजार जनी महाजनां का घर पाईए है ।' - इ. वि. पत्रिका, परिशिष्ट १ --
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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