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पंजित टोडरमल : व्यक्तित्व प्रौर कसंव उक्त विश्लेषण से दो प्रकार के मत सामने आते हैं। तेरापंथ के अनुयायी उसकी व्याख्या यह करते रहे कि अनादि से चला पाया शुद्ध जैन अध्यात्म मार्ग ही तेरापंथ है, वह जिनेश्वर का ही पंथ है, उससे भिन्न नहीं। जोधराज के शब्दों में, "हे जिन ! तेरापंथ तेरा है | पं० टोडरमल के अनन्य सहयोगी ब्र० रायमल 'ज्ञानानन्द श्रावकाचार' में लिखते हैं कि "हे भगवान म्हां तो थांका वचना के अनुसार चलां हों तात तेरापंथी हों। ते सिवाय और कुदेबादिक कों म्हां नाहीं सेवे हैं (पृ० १११) तुमही ने सैवी सी तेरापंथी सों म्हां तुम्हारों प्राज्ञाकारी सेवक टों पृ. ११) मो तेरा प्रकार के चारित्र के धारक ऐसे निग्रंथ दिगम्बर गुरु को माने और परिग्रहधारी गुरु को नाहीं माने ताते गुरु अपेक्षा भी तेरापंथी संभवे हैं" (पृ० ११२) । दूसरी ओर भट्टारक पंथी यथास्थितिवादी उसकी अलग व्याख्या करते हैं । पं० बखतराम साह तेरह मनुष्यों के मिलने से इसका नाम तेरापंथ पड़ा, कहते हैं । इसी प्रकार, चन्द्रकवि और पंडित पन्नालाल तेरह बातों को छोड़ देने से तेरहपंथ नाम पड़ा कहते हैं । पंडित पन्नालाल अपने 'तेरहपंथ खण्डन' नामक ग्रंथ में लिखते हैं कि तेरह बातें हटाकर नई रीति चलाने के कारण इसका नाम तेरहपंथ पड़ा । उनके अनुसार वे तेरह बातें' ये हैं :
( १ ) दश दिग्पालों को नहीं मानना । (२) भट्टारकों को गुरु नहीं मानना । ( ३ ) भगवान के चरणों में केसर का लेपन नहीं करना ।
(४) सचित्त फूल भगवान को नहीं चढ़ाना । ' पूर्व रीति तेरह थीं, तिनकों उठा विपरीत चले, ताते तेरापंधी भत्रे । तेरह पूर्व किसी ताका समाधान :दसदिकपाल उधापि' गुरुचरणां नहि लागे । केसरचरणां नहिं धरै पुष्पपूजा फुनि त्याग ।। दीपक मर्चा छोडि मासिका माल न करही । जिन न्हावण ना कर रात्रिपूजा परिहरही ।। जिन शासन देव्या तजी रांध्मो अन्न चहौई नहीं' 1 फल न चढ़ावै हरित २ फुनि बैंठिर पूजा करें नहीं' ।। ये तेरै उर धारि मंथ तेरै उरथपे । जिनशासन सूत्र सिद्धांतमांहिं ला वचन उथप्पे ।