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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व नाम लिखा है । इसमें लिखा गया है कि हमने इतनी बातें छोड़ दी हैं सो आप भी छोड़ देना- जिन-चरणों में केसर लगाना, बैठ कर पूजन करना, चैत्यालय भंडार रखना, प्रभु को जलौटपर रख कर कलश ढालना, क्षेत्रपाल और नवग्रहों का पूजन करना, मंदिर में जुमा खेलना और पंखे से हवा करना, प्रभु की माला लेना, मंदिर में भोजकों को पाने देना, भोजकों द्वारा बाजे वजवाना, रांधा हुअा अनाज चलाना, मंदिर में जीमन करना, रात्रि को पूजन करना, रथ-यात्रा निकालना, मंदिर में सोना यादि ।
जयपुर के निकट सांगानेर में इसका प्रचार भट्टारक नरेन्द्रकीति के समय में हुआ । भट्टारक नरेन्द्रकीति की उपस्थिति पं० नाथूराम मेगी. तर्क-वित पाद:780 स्थिर करते हैं। जो यूक्तिसंगत प्रतीत होती है। सांगानेर में उक्त तेरहपंथ के प्रचार के आरंभ होने का दिलचस्प वर्णन प्राप्त होता है जिसका उल्लेख आगे किया गया है।
तेरहपंथ के नामकरण के सम्बन्ध में भी विभिन्न अभिप्राय मिलते हैं । बखतराम साह लिखते हैं कि तेरह व्यक्तियों ने मिल कर वह पंथ चलाया अतः इसका नाम तेरहपंथ पड़ गया। उनका कहना है कि सांगानेर में एक अमरचंद गोदीका (अमरा भौंसा ) नामक सेठ थे, उन्हें धन का बहुत घमंड था । उन्होंने जिनवाणी का अविनय
'प्राई सांगानेर, पत्री कामां से लिखी। फागुन चौदसि हेर, सत्रह सौ उनचास सुदी ।।
- म० क० भूमिका, ५२ नोट - यह पत्र लिखने वाले हैं कामां वाले हरिकिसन, चिन्तामरिण, देवीलाल
और जगन्नाथ । सांगानेर के जिन भाइयों के नाम यह पत्र लिखा गया, उनके नाम हैं - मुकुन्द दास, दयानंद, महासिंह, छाजू, काल्ला,
सुन्दर और विहारीलाल । २ भट्टारक आमेर के नरेन्द्रकीति सु नाम | यह पंथ तिनके ममय नयो बल्यो अधधाम ॥२५॥
- मिथ्यात्व खंडन 5 प्र. क. भूमिका (शुद्धिपत्र), ११