SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व-धार्मिक व सामाजिक विचारधाराएँ और परिस्थितियाँ वि० सं० १६८३ में आगरा में चला'। श्वेताम्बराचार्य मेघविजय (विक्रम की अठारवीं शती) ने वि० सं० १६८० में इसकी उत्पत्ति मानी है। पं० टोडरमल के अनन्य सहयोगी साधर्मी भाई ब. रायमल लिखते हैं कि तेरापंथ तो अनादिनिधन है। जैन शास्त्रानुसार चला आया है । कोई नया पंथ नहीं है । वस्तुतः तेरहपंथ जैनियों का आध्यात्मिक मूलमार्ग है किन्तु कालवश अाई हई विकृतियों के विरुद्ध जो प्राध्यात्मिक क्रांति हुई और जिसे तेरहपंथ से पुकारा गया वह पं० बनारसीदास (वि० सं० १६४३-१७००) से प्रारंभ होती है, हालांकि उक्त धारा अपने क्षीरातम रूप में उसके पहिले भी प्रवाहित हो रही थी। बनारसीदास का इतना प्रभाव था कि जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आता, उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । व्यापारी लोग व्यापार के लिए प्रागरा याते थे और वहां से आध्यात्मिक रुचि लेकर वापिस जाते थे। इन आध्यात्मिक लोगों की प्रवृत्ति अध्ययन-मनन-चिन्तन और निरन्तर तत्त्वचर्चा करने की रहती थी। प्रागरा के बाद इसका प्रचार कामां' में हाई । एक पत्र प्राप्त हा है, जो वि० सं० १७४६ में कामां वालों ने सांगानेर के भाइयों के ' प्रथम चल्यो मत प्रागरे, धात्रक मिले कितेक । सौलह से तीयासिए, गही कितू मिलि देक ।।२०।। - मिथ्यात्व खंडन २ सिरि विक्याम नरनाहा गएहिं सोलस सएहिं बासेहिं । असि उत्तरेहि जायं वागारसि यस्य गयमेयं ॥१८॥ - युक्तिप्रबोध 3 ज्ञानानन्द श्रावकाचार, ११६ ४ किते महाजन प्रागरे, जात करण व्यापार । बनि आवै अध्यातमी, लरित नूतन प्राचार ।।२६।। ते मिलिके दिन रात बांचे चरचा करत नित ||२७॥ -मिथ्यात्व खंडन ५ कामां राजस्थान में भरतपुर के पास में है। ६ फिर कामां में चलि परयो, ताहीं के अनुसारि ।।२२।। -मिथ्यात्व खंडन
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy