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________________ २० पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृव उन्हें जड़ से उखाड़ फेंका। श्री परशुराम चतुर्वेदी लिखते हैं, "ऐसे ही समय जैन धर्मावलम्बियों में कुछ व्यक्ति अपने समय के पाखंड और दुनति की आलोचना करने की ओर अग्रसर हुए और उन्होंने अपनी रचनाओं और सदुपदेशों द्वारा सच्चे प्रादर्शों को सच्चे हृदय के साथ अपनाने की शिक्षा देना प्रारम्भ किया। उनका प्रधान उद्देश्य धार्मिक समाज में क्रमशः घुस पड़ीं अनेक बुराइयों की ओर सर्वसाधारण का ध्यान आकृष्ट कर उन्हें दूर करने के लिए उद्यत करना था ।" उक्त तेरहृपंथ में बाह्याचार की अपेक्षा श्रात्मशुद्धि पर विशेष बल दिया गया तथा बिना ग्रात्मज्ञान के वाह्य क्रियाकाण्ड व्यर्थ माना गया। पूज्य के स्थान पर केवल पंचपरमेष्ठी को मान्य किया । पूजन में शुद्ध जलाभिषेक व प्रासुक द्रव्य को अपनाया । मूर्ति पर किसी प्रकार का लेप या पुष्पारोहण श्रमान्य ठहराया क्योंकि उससे बीतराग दूषण लगता है । तेरपंथ की उत्पत्ति के बारे में पं० टोडरमल के समकालीन व प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी भट्टारकीय परम्परा के पोषक पंडित वखतराम साह विक्रम सम्वत् १५२१ में लिखते हैं कि यह पंथ सबसे पहले (ख) १. लोगन मिलिकै मत उपाय तेरहपंथ नाम अपनायो । - मिध्यात्व खंडन - २. या विषे भी तेरहपंथी सो प्रशुद्ध आग्नाय है । ३. जैन निबन्ध रत्नावली, प्राक्कथन, २६ १ जं० स०] इति०, ४८ ३ - तेरहपंथ खंडन २ उ० भा० सं० प०, ४७ " ( क ) जिस परिमाणं भूषणमल्लारहरणाद अंगपरिमरं । वारणारसियो बारइ दिगम्बरसमागमारणाए || २०११ - युक्तिप्रबोध ( ख ) केसर जिनपद चरचित्रों, गुरु नमिबो जगसार । प्रथम तजी यह दोर विधि मनमहि गणी असार ।। - मिध्यात्व खंडन
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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