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________________ १८ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व से बहिष्कृत कर दिया जाता। भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के सांगानेर चातुर्मास के समय अमरचन्द गोदी का एवं उनके पुत्र सिद्धान्त-शास्त्रों के पाठी जोधराज गोदीका को मंदिर से धक्के मारकर मात्र इसलिए निकाल दिया था कि वे अध्यात्मप्रेमी थे और उनके व्याख्यान के बीच में वे उनसे प्रश्न किया करते थे ' । शिथिलाचार पोषक श्रावकाचारों की रचनाएं भी उन्होंने कीं । तदनुसार श्रावकों में भी भ्रष्टाचार का प्रचार हुआ । विक्रम संवत् १४७८ में वासुपूज्य ऋषि ने 'दान शासन' काबा है। भावकों को चाहिए कि वे मुनियों को दूध, दही, छाछ, घी, शाक, भोजन, प्रसन और नई, बिना फटी-टूटी चटाई और नये वस्त्र दें । देवोपासना में भी आडम्बर का प्रवेश हुआ । श्रावकों के लिए धर्म-तत्त्व समझने की रोक लगा दी गई । अध्यात्म-ग्रन्थों के पठन-पाठन का भी निषेध कर दिया गया। उन साधुओं के मुख से जो वचन निकले वही ब्रह्म वाक्य बन गए। मंत्र-तंत्रवाद के घटाटोप में भी जनता को उलझाए रखने का यत्न किया गया । उक्त दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण जैन सम्प्रदाय में पं० बनारसीदास (वि० सं० १६४३-१७०० ) के समय तक धार्मिक शिथिलाचार में पर्याप्त वृद्धि हो चुकी थी । (क) संवत सोलासं पत्रोत्तरे, कार्तिकमास अमावस कारों । कीर्तनरेन्द्र भटारक सोभित, चातुर्मास सांगावति भारी | गोदीकारा उधरो अमरोसुल शास्त्रसिषन्त पढ़ाइयो भारी । बीच ही बीच बखानमै बोलत, मारि निकार दियो दुख भारी | · चन्द्रकवि : अ० क० भूमिका, ५२ (ख) तिनमें अमरा भौसा जाति गोदीका यह ब्योंक कहाति । धन को गरव अधिक तिन घरी जिनवारगी को श्रविनय करो ||३१|| तब लाको भावकनि बिचारि जिनमंदिर तैं दय निकारि । २ दुग्ध श्रीघनत काव्यशाक भक्ष्यासानदिकं । नवीनमव्ययं दद्यात्पात्राय कटमम्बरम् ।। - मिध्यात्म खंडन — ॐ० सा० इति०, ४६१ T
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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