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________________ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व लिखा गया है कि वे पालकी पर बैठे , उन पर छत्र लगा हुआ था और वे नग्न थे। इससे स्पष्ट है कि व्यवहार में यद्यपि वस्त्र का उपयोग भट्टारकों में खुलकर होने लगा और उसे वैध-सा भी मान लिया गया तथापि तत्व की दृष्टि से नग्नता ही पुज्य मानी जाती रही। भद्रारक पद प्राप्ति के समय कुछ क्षणों के लिये ही क्यों न हो, मग्न अवस्था धारण करना अावश्यक रहा। कुछ, भट्टारक मृत्यू समीप अाने पर नग्न अवस्था लेकर सल्लेखना स्वीकार करते रहे। बारहवीं शती के पंडितप्रवर आशाधर ने 'अनागार धर्मामृत' के दूसरे अध्याय में इन चैत्यवासी किन्तु नग्न साधुनों की चर्चा करते हुए लिखा है - "तथा तीसरे प्रकार के साधु वे हैं जो द्रव्यजिनलिंग को धारण करके मठों में निवास करते हैं और मठों के अधिपति बने हुए हैं और म्लेच्छों के समान यावरण करते हैं । ३ परमात्मप्रकाशकार मुनिराज योगोन्दु भी केशलुंच करके जिनवर लिंग धारण करने वाले परिग्रहधारी साधनों को लक्ष्य करके कहते हैं कि वे अपने को ठगने वाले और वमन का भक्षण करने वाले हैं ।' आगे चलकर उन्होंने चर्या और बिहार के समय वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया किन्तु उसके बाद वे वस्त्र उतार देते थे। चारहवीं शती से भारत में मुस्लिम राजसत्ता दृढमूल हुई। इस्लाम के अनुयायी मुसलमान विजेतानों का भारत पर आक्रमण एवं उनका देश के भीतरी भागों तक प्रदेश एक ऐसी घटना है जिसका नग्न मुनियों के स्थान पर भट्टारकों की स्थापना होने में बहुत बड़ा हाथ था। -- .. -- - - १ जन निर्वध रत्नावली, ४०५ २ भ० सं० भूमिका, ८ एवं लेधांचा १९० १ "अपरे पुनव्यजिनालागि गम्पायो भनेच्छन्ति मनच्छा इवाचरन्ति । लोकणास्त्रविरुद्धमाचारं चरनीयर्थ." - जं. सा• इति०, ४८८ कोण वि अप्पउ चंत्रियउ सिम त्रिवि छारेगा । मनल वि संग गा परिहरिय जिगावर-निगमलेगा ।।२।१० जे जिग-लिगु धरेवि मुगि इदुगग्गिगह न नि ।। छद्दि करेविगु ते जि जिय सा पुरण दि गिलंलि ।।२।६१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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