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पूर्व-धार्मिक व सामाजिक विचारधाराएं और परिस्थितियों आक्रामक के रूप में मुसलमानों का भारत प्रवेश अत्यन्त बर्बर एवं धार्मिक कट्टरता से युक्त था। यह राजनीतिक आक्रमण मूलतः धार्मिक मदान्धता और कट्टरता का प्रतिफल था । इतिहासकार सर जी. एस. देसाई इस्लामी शासकों की नीति की चर्चा करते हए लिखते हैं कि वे केवल राजनीतिक सत्ता को हस्तगत करके सन्तुष्ट नहीं हो, वे भारत के मैदानों पर केवल विजेता और लुटेरे के रूप में नहीं उतरे, वरन् काफिरों के देश में अपने धर्म का प्रसार करने पर उतारू जेहादी योद्धानों के रूप में पाए। वे नियमित रीति से अपने धर्म को जनता पर बलात् लादने में तत्पर हो गए। हिन्दू मंदिर तोड़े गए, उनकी सुन्दर कलाकृतियों का विध्वंस हुआ, मूर्तियां नष्ट हुई, प्रस्तर-लेख मिटा दिये गए। इस प्रकार से ध्वंस से प्राप्त सामग्री से उन्होंने मसजिदें बनाईं। कुझ को मिटाने और भारतीय जनता को इस्लाम के दामन में समेटने के लिये इन हृदयहीन और असभ्य धर्माधिकारियों ने हिन्दू धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन की मनाही कर दी तथा उसके अनुयायियों को कठोर दण्ड दिए । हिन्दुओं को अच्छे कपड़े पहनने की इजाजत नहीं थी और न भले ग्रादमियों की तरह रहने और वैभवशाली दिखने की अनुमति थी। उन पर विक्षुब्ध कर देने वाले कर लगाये जाते थे और उनके अध्ययन और ज्ञान के केन्द्र बरबाद किये जाते थे।
मुस्लिम शासकों की कोप दृष्टि मात्र हिन्दुओं पर ही न थी बरन् समस्त भारतीयों पर उन्होंने जुल्म ढाए थे । अतः उनके अत्याचारों से जैन भी अछूते न रहे और अन्य भारतीय धर्मों की भांति जैन धर्म पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा। ___ 'पटप्राभूत टीका' में भट्टारक श्रुतसागर सूरि ने लिखा है कि कलिकाल में म्लेच्छादि (मुसलमान वगैरह) यतियों को नग्न देखकर उपद्रव करते हैं, इस कारण मण्डप दुर्ग (मांडू) में श्री बसन्तकीर्ति स्वामी ने उपदेश दिया कि मुनियों को चर्या आदि के समय चटाई, १ न्यु हिस्ट्री ऑफ दि मराठाज, २६ १ नाथूराम प्रेमी ने इनका समय सोलहवीं शती माना है।
-जै० सा० इति०, ३७५