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________________ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और फरव विक्रम की आठवीं शती के प्रसिद्ध दार्शनिक श्वेताम्बर आचार्य हरिभद्र ने संबोध प्रकरण' के गुर्वधिकार में मठवासी साधुत्रों के शिथिलाचार का वर्णन इस प्रकार किया है ४ "ये कुसाधु त्यों और मठों में रहते हैं, पूजा करने का प्रारंभ करते हैं, देव-द्रव्य का उपभोग करते हैं, जिनमंदिर और शालाएं चिनवाते हैं। रंगविरंगे धूपवासित वस्त्र पहनते हैं, बिना नाथ के बैलों के सदृश स्त्रियों के श्रागे गाते हैं, आर्यिकाओं द्वारा लाए गये पदार्थ खाते हैं और तरह-तरह के उपकरण रखते हैं । जल, फल, फूल यदि संचित द्रव्यों का उपभोग करते हैं। दो तीन बार भोजन करते और ताम्बूल लवंगादि भी खाते हैं । ये मुहूर्त निकालते हैं, निमित्त बतलाते हैं, भभूत भी देते हैं । ज्योनारों में मिष्ट आहार प्राप्त करते हैं, आहार के लिए खुशामद करते और पूछने पर भी सत्य धर्म नहीं बतलाते । स्वयं भ्रष्ट होते हुए भी दूसरों से बालोचना-प्रतिक्रमण कराते हैं । स्नान करते, तेल लगाते, श्रृंगार करते और इत्र - फुलेल का उपयोग करते हैं। अपने हीनाचारी मृतक गुरुयों की दाह भूमि पर स्तूप बनवाते हैं। स्त्रियों के समक्ष व्याख्यान देते हैं और स्त्रियां उनके गुणों के गीत गाती हैं । सारी रात सोते, क्रय-विक्रय करते और प्रवचन के बहाने विकथाएं करते हैं चेला बनाने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को खरीदते, भोले लोगों को ठगते और जिन प्रतिमाओं को भी बेचते -खरीदते हैं। उच्चाटन करते और वैद्यक, यंत्र, मंत्र, गंडा, ताबीज आदि में कुमाल होते हैं । ये श्रावकों को सुविहित साधुओं के पास जाते हुए रोकते हैं, शाप देने का भय दिखाते हैं, परस्पर विरोध रखते हैं, और चेलों के लिये एक दूसरों से लड़ मरते हैं । जं०] सा० इति०, ४८०-८१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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