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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व दुभाष्या तें समझचा जाय है । सो सुरंगपट्टण पर्यंत ती इहाँ के देश के थोरे बहुत पाईए है। तातें इहां की भाषा · रामझाम दे हैं । पर सुरंगपट्टण के मनुष्य भी वैसे ही बोले हैं । तहां पर इहां का देस के लोग नाहीं । सुरंगपट्टण आदि सूं साथि ले गया जाय हैं। सो ताका अवलोकन करि पाए हैं।
इहां सूं हजार बारास कोस परै जनबद्री नग्र है । वहां जिन मन्दिर विष धवलादि सिद्धान्त नैं आदि दे और भी पूर्व वा अपूर्व ताड़ पत्रां मैं वा बांस के कागदां मैं करर्णाटी लिपि मैं वा मरहटी लिपि मैं वा गुजराती लिपि मैं वा तिलंग देश की लिपि मैं वा इहां के देश की लिपि मैं लिख्या बऊगाड़ा' के भार शास्त्र जैन के सर्व प्रकार के यतियाचार वा श्रावकाचार वा तीन लोक का वर्नन के वा विशेष बारीक चर्चा के वा महंत पुरुषां के कथन का पुराण, वा मंत्र, यंत्र, तंत्र, छंद, अलंकार, काव्य, व्याकरण, न्याय, एकार्थकोस, नाममाला प्रादि जुदे-जूदे शास्त्र के समूह उहां पाईए हैं। और भी उहां बड़ा-बड़ा सहर पाईए है, ता विर्ष भी शास्त्रां का समूह तिब्द है । घणां शास्त्र तो ऐसा है सो बुद्धि की मंदता करि कंही खुले नाही । सुगम है ते बचे ही है।
उहां के राजा वा रैति भी जैनी है। वा सुरंगपट्टण विषै पचास घर जनी ब्राह्मणां का है। वका राजा भी थोड़ा सा बरस पहली जैनी था। इहां सूं साढ़ा तीन से कोस परै नौरंगाबाद है, ताक पर पांच सै कोश सुरंगपट्टण है, ताक परे दोय स कौस जैनबद्री है, ता उर बीचि बीचि घणां ही बड़ा बड़ा नन पाईए है, ता विष बड़े-बड़े जिन मन्दिर बिराज है और जैनी लोग के समूह बस है
और जैनबद्री पर च्यार कोश खाड़ी समुद्र है इत्यादि; ताकी अद्भुत वार्ता जानूंगे।
धवलादि सिद्धान्त तौ उहां भी बचे नाही है। दर्शन करने मात्र ही है । उहां बाकी यात्रा जुरै है पर देव बाका रक्षिक है तातें ई देश मैं
, कई गाड़ियों, २ वहाँ का