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________________ ३१३ A- - -". - . - -.. : उपसंहार : उपलरिधयों और मूल्यांकन प्रान्तीय स्वायत्तता का भाव अधिक था । यद्यपि पंडितजी के समकालीन जयपुर रियासत सम्पन्न एवं सुशासित थी तथापि उनके जीवन तथ्यों से यह प्रमाणित है कि वहाँ भी एक समय साम्प्रदायिक तनाव अवश्य रहा' । ___ साहित्यिक दृष्टि से यह युग रीतिकालीन शृंगार युग था । जैन कवि शृंगारमुलक रचनाओं के कड़े पालोचक थे । वे इसी के समानान्तर प्राध्यात्मिक ग्रंथों के निर्माण में लगे हए थे। उन्होंने प्राचीन प्राकृत-संस्कृत धर्म ग्रन्थों की गद्य में भाषा व नकाएँ लिखीं। यद्यपि यह परम्परा पंडितजी के दो सौ वर्ष पूर्व से मिलती है तथापि उसे पूर्णता पर उन्होंने ही पहुँचाया : पंडितजी के जीवन का पूरा इतिवृत्त नहीं मिलता है। विभिन्न प्रमारणों के आधार पर इतना निश्चित है कि एकाध अपवाद को छोड़ कर जयपुर ही उनकी कार्यभूमि था। जयपुर के बाहर वे केवल चार-पाँच वर्ष सिंघारणा रहे । पंडितजी ने स्वयं लिखा है : देश ढहारह माँहि महान, नगर सवाई जयपुर जान । तामें ताकी रहनौ घनो, थोरो रहनो औठे बनो' ।। परम्परागत मान्यतानुसार पंडितजी की आयु कुल २७ वर्ष की थी परन्तु उनकी साहित्य साधना, ज्ञान एवं प्राप्त उल्लेखों को देखते हुए मेरा निश्चित मत है कि वे ४७ वर्ष तक जीवित रहे। उनकी मृत्यु तिथि लगभग प्रमाणित है। अतः जन्म तिथि इस हिसाब से विक्रम संवत् १७७६-७७ में होना चाहिए। वे प्रतिभासम्पन्न, मेधावी और अध्ययनशील थे। उस समय प्राध्यात्मिक चिन्तन के लिए जो अध्ययन मंडलियाँ थीं, उन्हें 'सली' कहा जाता था। पंडितजी को आध्यात्मिक चिन्तन की प्रेरणा जयपूर की तेरापंथ सैली से मिली थी। बाद में वे इस मैली के संचालक भी बने । 'सैली' का लक्ष्य धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ न्याय, व्याकरण, छंद, अलंकार, प्रादि की शिक्षा देना भी था। 'चु० वि०, १५२-१५७ २ स. चं० प्र०, छंद ४१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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