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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व मोर कसंव स्थानकवासी संप्रदाय की स्थापना की तथा अठारहवीं शती में प्राचार्य भिक्षु ने स्थानकवासियों में से एक तेरहपंथ अलग बनाया।
सत्रहवीं-अठारहवीं शती में दिगम्बर परम्परा में भट्टारकवाद ठाठ-बाट की चरम सीमा पर था और निवृत्तिवाद पर प्रवृत्तिबाद जम कर प्रासन जमाए बैठा था, जिसने एक तथाकथित प्राध्यात्मिक सत्तावाद स्थापित कर लिया था - जिसका वास्तविक अध्यात्मवाद से कोई सम्बन्ध न था। सब्रह्लीं शती में इसके विरुद्ध विद्रोह का चीड़ा बनारसीदास ने उठाया। उनके बाद क्रांति की इस परम्परा में पंडित टोडरमल का नाम उल्लेखनीय है। प्रांति की इस धारा का नाम 'अध्यात्मवाद' और 'तेरापंथ' अभिहित किया गया है ।
छठी शती से लेकर सोलहवीं शती तक बिशाल भारतीय धर्मों के पंथों में भी यथास्थितिवाद और आध्यात्मिक विचारधारा के बीच संघर्ष होते रहे हैं। प्राचार्य शंकर के वेदान्नवाद और धार्मिक संगठन ने भी इस देश की धार्मिक विचारधाराओं को बहुत दूर तक प्रभावित किया। कुछ आलोचकों के अनुसार उनके मठों की स्थापना का प्रभाव भट्टारक प्रथा पर पड़ा।
___ यद्यपि बौद्ध धर्म को निःशेष करने का श्रेय प्राचार्य शंकर को है तथापि परवर्ती लाल में बौद्ध साधना ने नई साधनाओं को जन्म दिया । सिद्ध, नाथ, निर्गण, सगुण आदि आध्यात्मिक विचारधाराओं में यह क्रिया-प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। जैन धर्म भी इस विशाल प्राध्यात्मिक उथल-पुथल और वाह्य दबावों का तटस्थ दृष्टा नहीं रह सका, उसमें भी इसकी प्रतिक्रिया हुई।
पंडित टोडरमल का समय विक्रम की अठारहवीं शती का अन्त एवं उन्नीसवीं शती का प्रारंभिक समय है । यद्यपि यह समय राजनीतिक दृष्टि से मुगलसत्ता के विघटन का युग था तथापि असंगठित हिन्दू राजसत्ता भी इस परिस्थिति का लाभ नहीं उठा सकी । नादिरशाह दुर्रानी और अहमदशाह की दिल्ली लूट के बाद देश में केन्द्रीय शासन के अभाव में
'भ० सं०, १७