________________
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व
प्राज्ञार्थ क्रिया
आज्ञार्थ रूप बनाने के लिए 'ओ, औ, ने, ना, हु' प्रत्यय प्रयोग किये गए हैं :(१) लिख -- श्री = लिखौ (२) लिखाव -|- औ = लिखाबो (३) बांच + औ = बांची (४) पद + प्रो = पढौ
लिखो लिखावौ बाँचौ पढ़ी, (५) सोध । यो = सोचो सोधो सोखो रुचिजुत बढ़ौ। (६) सीख + औ = सीखो । दुःखदायक रागादिक हरी, (७) बढ़ + औ = बढ़ी अर्थ विचारों धारण करौ ।। (८) हर +ौ = हरौ (६) विचार + औ = विचारी (१०) कर - प्री करी जान ने =जानने ।
ते सर्व मूनि साधु संज्ञा के धारक
जानने । जान -- मा= जानना तिनकी सुश्रुषा का निषेध किया
है, सो जानना। धार + औ = धारी
ते इस भाषाटीका ते अर्थ धारौ । जान + हु = जानहु
बहुरि लोभी पुरुषनिकों दान देना जो होय, सो शव जो मरचा ताका विमान जो चकडोल ताकी शोभा
समान जानहुँ। पूर्वकालिक क्रिया
पूर्वकालिक क्रियाएँ माध्यमान (विकरण ) धातु संज्ञा शब्दों में 'इ, पाय' प्रत्यय जोड़ कर बनाई गई हैं। सर्वाधिक प्रयोग 'इ' के मिलते हैं :