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भाषा
निगमालिक जिस
भविष्यकाल के रूप आलोच्य साहित्य की भाषा में खड़ी बोली के समान 'गा, गे, गी' लगा कर ही बनाये गए हैं, किन्तु 'गा, गे, गो' प्रत्ययों के पूर्व मूल धातु के अन्त में ए, ए, ऐ, ओं, औं, ॐ का प्रयोग पाया जाता है । इनके अतिरिक्त 'सी, स्यूं , हो' प्रत्ययों का प्रयोग भी मिलता है । कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं :
ऐसे तो मानेंगे।
मान + ए + गे = मानेंगे प्रकाश +ों + गा= प्रकाशोंगा सेव + ए + गे= सेवेंगे जीव + ए | गा = जीवेगा रह + एं+गे = रहेंगे
कर +ऐ+ गे= करेंगे कर 4-ए + मा= करेगा लिस्त्र + औं + गा= लिखोगा कर + इ + ही = करिहौं =
बुद्धि अनुसार अर्थ प्रकाशोंगा। विषयादिक सेवेंगे। यह जिवाया जीवेगा नाहीं। भविष्यकाल में हम सरीखे भी ज्ञानी न रहेंगे। ऐसे विचारि हास्य न करेंगे। ऐसे कार्य कौन न करेगा। उपचार करि मैं लिखौंगा। कर मंगल करिहों महाग्रंथ करन को काज । मैं तो बहुत सावधानी राखूगा। एक हूँ वहुत होस्यूं । इससे इतना तो होसो नरकादिक न होसी स्वर्गादिक होसी परन्तु मोक्षमार्ग की प्राप्ति तो होय नाहीं।
राख - ॐ + गा राखंगा हो + स्यूं = होस्यूँ हो + सी = होसी