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भाषा
आवश्यक हो जाता है। साध्यमान धातु से यहाँ प्राय: इसी प्रकार क्रियाएँ बनाई गई हैं। कहीं-कहीं सहायक क्रिया के बिना भी काम चलाया गया है । 'यों, ऊँ' प्रत्ययों का प्रयोग उत्तम पुरुष एकवचन में किया गया है । उक्त रूपों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं :-- ऐ - कर-|-ऐ+हैकर है ताको भी मंद कर है।
धार+ए+है=धार है सामर्थ्य को पार है। इ:- लिख+३९+ - लिजिए है प्राकृत संस्कृत पद लिखिए है ।
सुन+इए+है-सुनिए है बहुत कठिनता सुनिए है। ओं- कर+ों+ही करों हौं टीका करने का उद्यम करों हौं।
विचार+ों+हौं-विचारों ही टीका करने विचारों हों। ॐ- गूंथ-++k-गू) हूँ नाही यूं हूं। निम्न उदाहरणों में सहायक क्रिया का प्रयोग नहीं किया गया है :स्वाद+ऊँ-स्वार्दू सर्व को स्वा५ । स्पर्श+ ऊँ स्पर्श सर्व को स्पर्श। बध+ए बधै यह शक्ति ज्ञानदर्शन बधे वधं । पूछ+ए पूछ यहाँ कोऊ पूछ । विनश+ए विनशै जा करि सुख उपजै व दुख विनशै । निगल +इए-निगलिए मुख में ग्रास घऱ्या ताकौं पवन तें
निगलिए। चाव --ए-चाब जैसे कूकरा हाड़ चाब। बोल +ए बोल मरमच्छेद गाली प्रदानादि रूप
बचन बोले। भूतकालिक क्रिया
भूतकाल सम्बन्धी रूप 'ई, श्रा, ए, ऐ, प्रौ' प्रत्यय जोड़ कर बनाये गए हैं। कहीं-कहीं 'थी, था, थे' सहायक क्रिया के रूप भी लगाये गए हैं । सामान्य भूत के रूप 'या, ए, ई, यो' प्रत्यय जोड़ कर