________________
२७६
पंडित टोपरमल : व्यक्तित्व और फर्सस्व केताइक - पर्व के दिन भी केताइक काल पर्यन्त पाप क्रिया
___ करे पीछे पोपहधारी होय । अल्प - अल्प कषाय होते थोरा अनुभाग बंधैं है । अधिक - शास्त्राभ्यास विर्षे सुभग, वढयो अधिक उत्साह । किंचित् - चरम शरीर से किंचित् ऊन पुरुषाकारवत् प्रात्म
प्रदेशनि का आकार अवस्थित भया । किंचिन्मात्र -- जो कुलप्रमादिकतै भक्ति हो है सो किंचिन्मात्र
ही फल का दाता है। (३) स्थानबाचक :
दूर-दूर किया चाहे है । समीप - दूर तें कैसा हो जाने समीप ते कैसा ही जाने । ' निकटि - दक्षिण में गोम्मट निकटि मूलविद्रपुर।
यहाँ -- अर कहाँ से पाकर यहाँ जन्म धाऱ्या है । इहाँ – (१) इहाँ इतना जानना ।
(२) इहाँ ऐसा नियम नाहीं है । कहाँ – मर कर कहाँ जाऊँगा । तहाँ - (१) तहाँ प्रथमपरहंतनि का स्वरूप विचारिए है ।
(२) तहाँ ठीक कीए ग्रंथ पाइए अबार हैं। जहाँ - या विर्षे जहाँ-जहाँ चूका होइ, अन्यथा अर्थ होई
तहाँ-तहाँ मेरे ऊपरि क्षमा करि.....। जह - मार्ग कियो तिहिं जुत विस्तार,
जहें स्थूलनिको भी संचार । ऊँचा - यात ऊँचा और धर्म का अंग माहीं । पीछे-पीछे देश सकल चारित्र को बखान है । सर्वत्र -बहुरि जधन्य सर्वत्र एक अंतर्मुहूर्त काल है ।