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________________ भाषा (२) परिणामवाचक :इतना - इतना जानना जिनको अन्यथा जाने जीव का बुरा होय । जितना - जैसे मूर्य का प्रकाश है सो मेघ पटल में है जितना ध्यक्त नाही तितना का तो तिसकाल विर्षे अभाव है। तितना--जेता अनुराग होय तितना फल तिसकाल विर्षे निपज है। R: -- अपनी रिकि के हो कि निधं जमते उदय प्राव हैं। जैती- जन्म समय तें लगाय जती आयु की स्थिति होय तितने काल पर्यन्त शरीर का सम्बन्ध रहे है। जेता] अर जेता यथार्थपना हो है, तेता ज्ञानावरण के तेता क्षयोपशम त हो है । जितने ! जितने ग्रंशनि करि वह हीन होय, तितने ग्रंशनि तितने । करि यह प्रगट होय । बहुत -- बहुत सूत्र के करन ते नेमिचन्द गुणधार । मुख्यपन या ग्रंथ के कहिए हैं करतार ।। अति -- (१) शास्त्राभ्यास विर्षे प्रति प्रासक्त है। (२) गमन करन को प्रति तरफरें। किळू – (१) परन्तु किछू अवधारण करते नाहीं । (२) संशयादि होते किछू जो न कीजिए ग्रंथ । केतीक -- मुख्यपने केतीक सामग्री साता के उदय ते हो है, केतीक असाता के उदय ते हो है । कितेक – सूत्र किसेक किए गंभीर । केतक - केतक काल पीछे च्यारि अघाति कर्मनिका.......। केतै इक - परन्तु फेतइक अति मंदबुद्धीनि तें भला है ।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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