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________________ भाषा २७३ आलोच्य साहित्य की भाषा के और बजभाषा के सर्वनामों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि दोनों में पर्याप्त समानता है। दोनों में ही बहुवचन के रूपों का प्रयोग एकवचन में भी हुया है। इसी प्रकार 'या' के स्थान पर 'जा' की प्रवृत्ति दोनों में समान रूप से पाई जाती है । अालोच्य साहित्य की भाषा में कर्ता के उत्तम पुरुप एकवचन में ब्रजभाषा के हों, हौं' रूप नहीं मिलते हैं, किन्तु एकाध स्थान पर संस्कृत का 'अहं' दिखाई दे जाता है। कर्म व सम्प्रदान में ब्रज के 'मोहि, मुहि, तोहि, तुहि' आदि रूप न होकर खड़ी बोली के 'मुझकों, मो, तोकं रूप प्राप्त होते हैं, पर कहीं-कहीं विशेषकर पद्य में 'ताहि' दिखाई पड़ जाता है। जिन्हें, निन्हें, किन्हें के स्थान पर 'जिनको, तिनकों, किनको', प्रयोग में लाए गए हैं, जो ब्रजभाषा की अपेक्षा खड़ी बोली के अधिक निकट हैं। सब कुछ मिला कर इनकी प्रकृति नजभाषा के सर्वनामों के ही निकट है । अध्यय पंडित टोडरमल की भाषा में निम्नलिखित अव्यय प्रयुक्त हैं, जो वाक्यरचना में विभिन्न रूप से काम आते हैं । अव्ययों को विभिन्न बयाकररगों ने विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत रखा है। विचाराधीन भाषा में प्रयुक्त अव्ययों को निम्नलिखित शीर्षकों में रखा जा सकता है :-- (१) समयवाचक अव्यय (२) परिमाररावाचक अव्यय (३) स्थानवाचक अन्यय (४) गुणवालक अन्यत्र (५) प्रश्नवाचक अव्यय (६) निषेधवाचक अध्यय (७) विस्मयवाचक अव्यय (८) सामान्य अव्यय
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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