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________________ २६६ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्तुंस्य दोष नहीं है । अतः उन्होंने देशी भाषा में टीकाएँ लिखीं'। भाषा के मुलभूत स्वरूप एवं वर्गों के सम्बन्ध में पंडितजी का कथन है कि अकारादि अक्षर अनादिनिधन हैं. जिन्हें लोग अपनी इच्छा के अनुसार लिखते हैं। इसीलिए 'सिद्धो बर्णसमाम्नायः' कहा गया है । जहाँ तक वर्णसमाम्नाय का सम्बन्ध है, पंडितजी उसे सिद्ध मान कर चलते हैं । वे उसके विकास की समस्या में नहीं पड़ते । उनके अनुसार अक्षरों का समुह पद है और सत्यार्थ के प्रतिपादक पदों के समूह का नाम श्रुत है । इस प्रकार उन्होंने श्रुत की परिभाषा ध्यागजा बना दी है। १ "जे जीव संस्कृतादि विशेष शान रहित हैं ते इस भाषाटीका से अर्थ धारो । बहुरि जे जीन संस्कृतादि ज्ञानसहित हैं परन्तु गणित आम्नाबादिक के शान का अभाव ते मूल ग्रन्थ वा संस्कृत टीकाविर्ष प्रवेश न पात्र हैं, तो इस भाषा टीकात प्रथं को चारि मूलग्नन्थ वा संस्कृत टीकावियें प्रवेश करहू । बहुरि जो भाषाटीका से मूलमन्थ वा सस्कृत टीकाविषं अधिक अर्थ होई ताके जानने का अन्य उपाय बने सो करछु । इहाँ फोऊ कहै संस्कृति ज्ञान वालों के भाषा अभ्यास विर्षे अधिकार नाहीं ? ताकी काहिए हैं - संस्कृत ज्ञान वालों का भाषा बाँचने लें कोई दोष तो नाही उपज है । अपना प्रयोजन जैसे सिद्ध होय तैसें करना । पूर्व अर्द्धमागधी श्रादि भाषामा महान् ग्रंथ थे । बहुरि बुद्धि की मंदता जीवनि के भई लब संस्कृतादि भाषामय ग्रन्थ बने । व विशोष बुद्धि की मंदता जीवनि के भई तातै दणभाषामय ग्रन्थ करने का विचार भया । बहरि संस्कृतादिक का अर्थ भी अब भाषावारकरि जीवनि को समझाइये है। इहीं भाषाद्वारकरि ही अर्थ लिया तो किछ दोष नाहीं है। ऐसे विचारि श्रीमद् गोम्मटसार द्वितीय नाम श्री पंचसंग्रह ग्रन्थ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नामा संस्कृत टीका ताके अनुसार 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका नामा याहु देशभाषामयी टीका करने का निश्चय कीया है।" - स. चं० पी०, ४-५ "अकारादि अक्षर है ते अनादिनिधन हैं, काहू के किए नाहीं । इनिका आकार लिखना तो अपनी इच्छा के अनुसारि अनेक प्रकार है परन्तु बोलने में आई हैं ले अक्षर ती सर्वत्र सर्वदा ऐसे ही प्रवत हैं सो ही कह्या है -- 'सिद्धो वर्णसमाम्नायः' । याका अर्थ यहु - जो अक्षरनि का संप्रदाय है सौ स्वयंसिद्ध है । बहुरि तिनि अक्षरनि करि निपजे सत्यार्थ के प्रकाशक पद तिनके समूह का नाम थुत है शो भी अनादिनिधन है ।" -- मो. मा०प्र०, १४
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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