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________________ भावा पंडितजी ने इस सम्बन्ध में मोती-माला का उदाहरण देते हुए कहा है जैसे कोई मोतियों की छोटी-बड़ी माला बनाता है, परन्तु वह मोती नहीं बना सकता, मोती उसके लिए सिद्ध हैं: उसी प्रकार वर्णसमाम्नाय सिद्ध है, जसना अपनी हमामा करते हैं, इस प्रयोग में मूल अर्थ प्रभावित नहीं होता है । अतः इसे भी मूलग्रंथ की तरह प्रमाणिक माना जाय । इस प्रकार उन्होंने देशी भाषा को परम्परा से चली आती रही भाषा के विरुद्ध आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया । देशभाषा के लिए उनकी यह मौलिक देन है। __पंडितजी द्वारा प्रयुक्त भाषा (जिसे वे देशभाषा कहते है) वस्तुतः तत्कालीन जयपुर राज्य व पार्श्ववर्ती क्षेत्र में प्रयुक्त ब्रज है, परन्तु उसमें जयपुर की तत्कालीन बोलचाल की भाषा के प्रयोग भी आ गए हैं। इसका एक कारण यह है कि उनका मुख्य उद्देश्य प्राध्यात्मिक तत्त्वज्ञान को देश भाषा में लिख कर अधिक से अधिक व्यापक और लोकप्रिय बनाना था। अत: इसके लिए स्थानीय रूप से प्रयुक्त बोली को माध्यम बनाने के बजाय उन्होंने प्रचलित देशभाषा (ब्रज) को ही माध्यम के रूप में स्वीकार किया, परन्तु उसमें बोलचाल की स्थानीय भाषा का भी पुट है । दूसरे शब्दों में परम्परागत भाषा होते हुए भी उसके बोलचाल के स्वरूप को बनाए रखने का प्रयत्न किया है। शब्द समूह पंडित टोडरमल का साहित्य मुख्यतः संस्कृत और प्राकृत भाषा में लिखित प्राचीन साहित्य पर आधारित धार्मिक साहित्य है। इसलिए उसमें ७५ प्रतिशत संस्कृत, प्राकृत और उनकी परम्परा से विकसित शब्द हैं । इसके अतिरिक्त देशी शब्दों का भी प्रयोग है पर अपेक्षाकृत कम । उर्दू के शब्द भी मिलते हैं पर बहुत थोड़े । एक स्थान पर अरबी शब्द 'हिलन्वी' का भी प्रयोग हुअा है । इस प्रकार तत्सम, तद्भव 'मो मा०प्र०, १४-१५ २ प्रो० मोलवी करीमुद्दीन द्वारा लिखित 'करीमुललुगात' शब्दकोष में 'हिलब्धी' का अर्थ एक प्रसिद्ध कांच है । प्रकरण के अनुसार भी यह अर्थ ठीक है ।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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