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________________ भाषा २६५ ग्वालियरी भाषा लिखा है । वस्तुतः वह जयपुर, ग्वालियर आदि विशाल हिन्दीभापी प्रदेश की साहित्य भाषा प्रजभापा ही है क्योंकि लेखक स्वयं इसे देशभाषा कहता है एवं उसका स्वरूप अपभ्रंश और लोकभाषा के बीच स्वीकार करता है। वह अपनी भापा को किसी नाम विशेष से अभिहित नहीं करता है । लेकिन भाषा में रचित्त होते हुए भी इसके अर्थ में कहीं भी किसी प्रकार का दोष नहीं है, यह उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है। उनका 'देशभाषा' से प्राशय है तत्कालीन लोक प्रचलित विकासशील भाषा, जिसको व्याकरणादि के अध्ययन के बिना भी समझा जा सके। वे मोक्षमार्ग प्रकाशक के अध्ययन की प्रेरणा देते हुए लिखते हैं : "इस ग्रन्थ का तो बाँचना, सुनना, विचारना ना सुगम है, कोऊ व्याकरणादिक का भी साधन न चाहिए, तातै अवश्य याका अभ्यास विर्ष प्रवत्तौं, तुम्हारा कल्याण होयगा ।" पंडितजी के लेखन कार्य का मुख्य उद्देश्य उच्च माध्यात्मिक ज्ञान को प्रचलित लोकभाषा में सरल ढंग से प्रस्तुत करना था क्योंकि तत्त्व-विवेचन के अन्य संस्कृत या प्राकृत भाषा में थे। उन्होंने इन दो कारणों से इनकी टीका संस्कृत को अपेक्षा देशभाषा में की : (१) संस्कृत ज्ञान से रहित लोगों को तत्त्वज्ञान सुलभ हो सके । (२) जिन्हें संस्कृत का ज्ञान है, वे इसकी सहायता से अर्थ का और अधिक विस्तार कर सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि नई भाषा में तत्त्वज्ञान की चर्चा वारना मई बात नहीं है। पूर्व में अर्द्धमागधी के ग्रन्थों को समझना कठिन हो गया तो संस्कृत में शास्त्र रचना हुई और उसके बाद देशभाषा में । जब संस्कृत के ग्रंथों का अर्थ देशी भाषा में समझाया ही जाता है तो मूल तत्त्वज्ञान को देशी भाषा में लिखने में भी कोई १ देखिए प्रस्तुत ग्रंथ, ५२ २ मो मा० प्र०, ३०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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