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डॉ० नरेन्द्रकुमारजी भानावत, प्राध्यापक, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने भी समय-समय पर सत्परामर्श दिए एवं मेरे कार्य को बीच-बीच में देख कर सहयोग दिया है । मैं उनका हृदय से आभारी हूँ ।
श्रीमान् सेठ पूरणचंदजी गोदीका - जिन्होंने पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की स्थापना की और जयपुर में स्मारक भवन का भव्य निर्माण कार्य किया की निरन्तर प्रेरणा एवं सर्व प्रकार के सक्रिय सहयोग का इस कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है । उनके सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव नहीं था। ट्रस्ट के सुयोग्य मंत्री श्री नेमीचंदजी पाटनी की निरन्तर प्रेरणा एवं सक्रिय सहयोग भी अविस्मरणीय है ।
पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने इस ग्रन्थ को प्रकाशित ही नहीं किया किन्तु लागत मूल्य पर पाठकों तक पहुँचाने का संकल्प किया तथा श्री सोहनलालजी जैन, जयपुर प्रिंटर्स ने प्रार्थिक लाभ की परवाह किए बिना इतनी शीघ्रता से इतना सुन्दर मुद्रण किया है- एतदर्थं मैं उनका भी आभारी हूँ । इसी प्रकार सर्व श्री खीमचंद भाई, श्री बाबू भाई, एवं मेरे अग्रज पंडित रतनचंद्र शास्त्री का सहयोग भी स्मरणीय है ।
प्रत्येक स्तर पर निरन्तर सहयोग देने वाले श्री राजमलजी जैन, जयपुर प्रिण्टर्स के प्रति आभार व्यक्त कर उक्त कार्य के प्रति उनकी आत्मीयता को मैं कम नहीं करना चाहता है । जैसा सहयोग पंडित टोडरमलजी को सम्यग्ज्ञानचंद्रिका के निर्माण में ब्र० रायमलजी से प्राप्त हुआ था, वैसा ही सहयोग इस कार्य में मुझे बन्धुवर श्री राजमलजी से प्राप्त हुआ है।
इस अवसर पर पूज्य पिताजी साहब के प्रति भी मैं गद्गद् हृदय से अद्धान्वित हूँ, जिन्होंने अनेक कठिनाइयों और विषमताओं के बीच मुझे इस योग्य बनाया तथा स्व० माताजी, जिनका वरदहस्त छः माह पूर्व तक प्राप्त था, जो पच्चीस वर्ष तक रोग- शय्या पर रहने पर भी मेरे अध्ययन में सदा साधक ही बनी रहीं के प्रति में विनम्र श्रद्धाजंलि समर्पित करता हूँ ।
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