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अन्त में तीन परिशिष्ट दिये गए हैं । प्रथम परिशिष्ट में पं० टोडरमलजी के अनन्य सहयोगी साधर्मी भाई व रायमलजी द्वारा लिखित जीवन पत्रिका एवं इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका दी गई हैं। उनमें पंडितजी के जीवन के कई पहलू उजागर हुए हैं तथा उनमें उल्लिखित तथ्यों से उनके व्यक्तित्व और कत्र्तृत्व पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। उनकी मूल प्रतियों प्राप्त हैं। उन्हें उसी रूप में छापा गया है, जिस रूप में वे हैं। मात्र विराम, अर्द्ध-विराम आदि अपनी ओर से लगाए हैं व आवश्यक शब्दार्थ टिप्पणी के रूप में दिए हैं। दूसरे परिशिष्ट में संदर्भ-ग्रंथों की सूची एवं तीसरे में नामानक्रमणिका दी गई है । ग्रंथ के प्रारंभ में संकेत-सूची भी दी गई है ।
पंडित टोडरमलजी के साहित्य, विशेषकर 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' का साध्यात्मिा मर्म शमोनी इट ओ पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी से प्राप्त हुई, उनके प्रति मैं श्रद्धानवत है एवं उनका मंगल आशीर्वाद पाकर अपने को गौरवान्वित अनुभव करता है।
अपने इस अध्ययन काल में डॉ० जैन ने न केवल भाषाशैली की दृष्टि से मुझे महत्त्वपूर्ण और मौलिक खोज के प्रति प्रेरित किया बल्कि कई प्रसंगों पर दार्शनिक व तात्त्विक चिन्तन में भी उनसे नई दृष्टि मिली। मेरे अनुरोध पर उन्होंने सारगभित प्रस्तावना भी लिखने की कृपा की है। मैं उनके प्रति माब्दों में क्या आभार व्यक्त करूँ । 'कुंदवंदाचार्य से कानजी स्वामी तक की परम्परा पर शोधपूर्ण कार्य होना चाहिए' - प्रस्तावना में उनका यह सुझाव वास्तव में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
डॉ० हीरालालजी माहेश्वरी ने ग्रन्थ प्रकाशन के पूर्व कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं एवं मेरे आग्रह पर विद्वत्तापूर्ण भूमिका लिख दी है। भूमिका में उल्लिखित उनका यह ग्रादेश कि 'टोडरमलजी की विचारधारा के समकालीन एवं परवर्ती प्रभावों पर शोधकार्य हो और बह भी मेरे द्वारा' - प्रस्तुत शोधकार्य व मेरे प्रति उनका सद्भाव है। मैं उनकी इस महानता के प्रति बहुत-बहुत प्राभारी हूँ।
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