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________________ चतुर्थ अध्याय में जनदर्शन एवं जैनागम परम्परा के परिप्रेक्ष्य में उनके द्वारा वरिणत वर्थ-विषय एवं दार्शनिक विचारों का परिशीलन किया गया है - जिसमें सम्यग्दर्शन, जीव-अजीत्र, कर्म, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य-पाप, देव-शास्त्र-गुरु, भक्ति, देव और पुरुपार्थ, निमित्त-उपादान, सम्यग्ज्ञान, निश्चय-व्यवहारनय, जैनाभास, निश्चयाभासी,व्यवहाराभासी, कुल अपेक्षा धर्म मानने वाले, याज्ञानुसारी जैनत्व, लौकिक प्रयोजन से धर्म साधना करने वाले, उभयाभासी, नयकथनों का मर्म और उनका उपयोग, चार अनुयोग, अनयोगों का अध्ययन-ऋम, बीतरागता एक मात्र प्रयोजन, न्याय-व्याकरणादि शास्त्रों के अध्ययन की उपयोगिता, सम्यक्चारित्र, अहिंसा, भावों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, वक्ता, श्रोता, पढ़ने योग्य शास्त्र, वीतरागविज्ञान, गृहीत-अग्रहीत मिथ्याभाव, इच्छा, इच्छाओं के भेद, आदि विषयों का अनुशीलन किया गया है। पंचम अध्याय में उनकी गद्य शैली पर प्रकाश डाला गया है। इसके अन्तर्गत दृष्टान्त, प्रश्नोत्तर आदि शैलीगत विशेषताओं पर सोदाहरण विवेचन किया है । षष्ठ अध्याय में पंडितजी की भाषा पर विचार किया गया है । शब्द समूह - तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी : संज्ञा शब्द व उनके व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, भाववाचक भेद; सर्वनाम - उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष; अव्यय - कालवाचक, स्थानवाचक, परिमारगवाचक, गुणवाचक, प्रश्नवाचक, निश्चयवाचक एवं सामान्य अध्यय; शब्द विशेष के कई प्रयोग; कारक - कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध और अधिकरण : क्रियापद - साध्यमान धातु से बनी क्रियाएँ, देशी क्रियाएँ, प्रेरणार्थक क्रियाएँ, पूर्वकालिक क्रियाएँ एवं क्रिया के वर्तमान, भूत, भविष्य काल, आज्ञार्थ प्रादि रूपों पर विचार किया गया है। अन्त में निष्कर्ष रूप से उनकी भाषा की प्रकृति का ' विश्लेषण किया गया है। सप्तम अध्याय में हिन्दी भाषा और माहित्य को पंडितजी के योगदान का मूल्यांकन करते हुए समस्त विषय का उपसंहार किया है। ( xxvi)
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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