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________________ २५६ ( ४ ) स्वामी की आज्ञा से नौकर ने भला-बुरा किया । उसमें कोई नौकर से बैर बाँधे तो मूर्ख ही है । + (५) जैसे शीलवती स्त्री स्वेच्छा से परपुरुष के साथ पति के समान र मरण क्रिया कभी भी नहीं. करती है । ( ६ ) जैसे कोई पुरुष स्वप्न में अपने को राजा हुआ देखे और प्रसन्न हो । (७) जैसे कोई बालक स्त्री का वेष धारण करके शृंगार रस का ऐसा गाना गावे कि सुनने वाले काम विकाररूप हो जानें किन्तु वह उसका भाव नहीं जानता है, श्रतः कामासक्त नहीं होता है । ( - ) किसी व्यक्ति ने धर्म साधन के लिए मन्दिर बनाया किन्तु कोई पापी उसमें पापकर्म करे तो मन्दिर बनाने वाले का तो दोष नहीं है । १ मो० मा० प्र०, १३० वही, २७६ ७ वही, ३०६ ४ चही, ३४८ ५ बद्दी, ४२५ पंडिस टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तृस्थ (४) उसी प्रकार इस जीव का कर्मों को दोष देना बेकार है, क्योंकि वे तो जीव के भावानुसार ही बँधे हैं'। ( ५ ) उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि सुगुरुवत् कुगुरु आदि को कभी भी नमस्कार आदि नहीं करते । ( ६ ) वैसे ही निश्चयाभासी भ्रम से कल्पना में अपने को सिद्ध मान कर सन्तुष्ट होते हैं । (७) उसी प्रकार भावज्ञान से रहित उपदेशक ऐसा उपदेश देते हैं कि दूसरे आत्मरस के रसिक हो जाने पर स्वयं अनुभव नहीं करते हैं व जैसा लिखा है वैसा उपदेश दे देते हैं । I ( 5 ) उसी प्रकार आचार्यों ने धर्म में लगाने के लिए शास्त्रों की रचना की । यदि कोई उन्हें पढ़ कर ही विकाररूप परिरणमित हो तो इसमें श्राचार्यों का तो दोष नहीं है । ➖➖➖➖➖
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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