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गद्य शैली
( ९ ) मनुष्य जैसे हाथ-पैर बंदर के नहीं होते ।
(१०) जैसे अंधा मिश्री के स्वाद का अनुभव करता है, उसके प्राकारादि को नहीं देख पाता है ।
पशु एवम् प्रकृति सम्बन्धी उदाहरण
उदाहरण
(१) सूर्योदय होने पर चकवा - arat अपने आप मिल जाते हैं और सूर्यास्त होने पर अपने श्राप बिछुड़ जाते हैं। उन्हें कोई मिलाता या बिछुड़ाता नहीं है ।
(२) जैसे कुत्ते को लाठो मारने पर कुत्ता लाठी मारने वाले की ओर न झपट कर लाठी पर झपटता है। असली शत्रु को नहीं पहिचानता ।
( ३ ) शास्त्रों में इस काल में भी हंसों का सद्भाव कहा है, किन्तु हंस दिखाई नहीं देते ती
१ मो० म० प्र०, ५०२ २] वहीं, ५१० ( रहस्यपूर्ण चिट्ठी)
३ वही, ३७
४ बही, ८३
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( ६ ) उसी प्रकार ज्ञानी के समान अज्ञानी के सम्यक्त्व के अंग नहीं हो सकते' । (१०) उसी प्रकार क्षयोपशम ज्ञान वाले अज्ञानी श्रात्मा का अनुभव करते हैं, आत्मा के प्रदेशों को नहीं देखते हैं ।
सिद्धान्त
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( १ ) उसी प्रकार रागादि भाव होने पर कर्म अपने श्राप बंध जाते हैं । कर्मोदय काल में जीव स्वयं त्रिकार करता है, उन्हें कोई परिणामाता या विकार नहीं कराता है । (२) उसी प्रकार अज्ञानी स्वयंकृत कर्मों के फल प्राप्त होने पर बाह्य पदार्थों पर रागद्वेष करता है । ग्रपने असली शत्रु मोह-राग-द्वेष को नहीं पहिचानता * ।
( ३ ) उसी प्रकार शास्त्रों में इस काल में भी साधुयों का सद्भाव कहा है, किन्तु सच्चे