________________
२५५
गद्य शैली (७) जैसे खोटा रुपया चलाने वाला उसमें कुछ चांदी भी डालता है।
(७) उसी प्रकार नकली साधु भी धर्म का कोई ऊंचा अंग ( क्रिया) रख कर अपनी उच्चता की धाक लोगों पर जमाए रखना चाहता है'।
मानव जीवन सम्बन्धी उदाहरण
उदाहरण (१) एक पड़ाव पर एक पागल रहता था। वहाँ बहुत यात्री आते थे। उनके साथ गाड़ी-घोड़े अादि धन-धान्यादि सामग्री भी होती। वह उन्हें अपनी मान कर प्रसन्न होता, पर वे जब जाने लगते तो दु.ली होता। (२) गाड़ी अपने आप चल रही है। बालक उसे धक्का देकर मानता है कि यह गाड़ी मेरे धकाने से चल रही है तथा जब । गाड़ी रुक जाती है तब बालक व्यर्थ में खेद-खिन्न होता है ।
सिवान्त (१) उसी प्रकार इस जीव के भवरूपी पड़ाव पर शरीर स्त्री पुत्रादि का संयोग हो गया है। यह उन्हें अपने मान कर प्रसन्न होता है और उनके वियोग में दुःखी । प्रतः पागल केशमा मालनी दी है ! (२) उसी प्रकार सारा जगत स्वयं परिणमनशील है, पर यह अज्ञानी समझता है कि मेरे द्वारा परिणमित हो रहा है। जब इसकी इच्छानुकुल परिणमन नहीं होता तब व्यर्थ ही दुःखी होता है। (३) उसी प्रकार पाप कर्म बाँधे और दुखी हो, फिर को को दोष दे तो मुर्ख ही माना जायगा।
(३) जसे कोई पत्थर से अपना सिर स्वयं फोड़े, फिर पत्थर को दोष दे तो मूर्ख ही है।
' मो० मा०प्र०, २६२-६३ २ बही, ७३ ३ वही, १२८ ४ वही, १३०