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________________ २५४ पंडित दोहरमल : व्यक्तित्व और कस्थि अपने आप सहज आता है तो मिले तो करते हैं, अन्यथा व्यापार करता है, अन्यथा नहीं। नहीं'। (४) कोई भी व्यक्ति धन (४) उसी प्रकार ज्ञानी थोड़ी खर्च करना नहीं चाहता, पर भी कषाय नहीं करना चाहता, सम्पूर्ण जाता देखे तो थोड़ा पर पापरूप महाकषाय होती देकर काम निकालने का उपाय । देखे तो उससे बचने के लिए करता है। अल्प कषायरूप पुण्य कार्यों में लगता है। (५) जैसे रोजनामचा (दैनिक (५) उसी प्रकार शास्त्रों में रोकड़) में अनेक रकमें जहाँ- अनेक प्रकार उपदेश दिया तहाँ लिखी रहती हैं, उन्हें खाते गया है। उसको सम्यग्ज्ञान में खताए बिना यह पता नहीं ( सही बुद्धि ) से सही-सही चलता कि किससे क्या लेना है पहिचाने तब हित-अहित का पता और किसका क्या देना है। चलता है, अन्यथा नहीं। (६) मुनीम सेठ का कार्य (६) उसी प्रकार ज्ञानी करता है, उसे अपना कहता है, कर्मोदय में शुभाशुभ भावरूप कार्य बनने बिगड़ने पर उसे परिणमित होता है, उन्हें अपने हर्ष-विषाद भी होता है, उस भी कहता है । पर अन्तर में उन्हें समय वह अपने और सेठ को भिन्न ही मानता है। यदि वह एक ही समझता है; पर अन्तर शरीराश्रित व्रत-संयम को अपना में सेठ और अपने भेद को अच्छी माने सो अज्ञानी ही काहा तरह जानता है । यदि सेठ के जायेगा । धन को अपना माने तो वह मुनीम नहीं, चोर कहा जाएगा। . १ मो० मा० प्र०, २२७-२८ २ वही, ३०२ ३ वही, ४४८ * वही, ५०५ (रहस्यपूर्ण चिट्ठी)
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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