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पंक्ति टोडरमल : ग्यक्तिरष मोर कर्तृत्व उनका साहित्य उदाहरणों का एक विशाल भण्डार है। परम्परागत उदाहरणों की अपेक्षा उन्होंने उदाहरणों का चुनाव दैनिक जीवन एवं प्रकृति से किया है। मानव जीवन, पशु-पक्षी एवं प्रकृति से चुने गए उदाहरणों से उनका सूक्ष्म निरीक्षण एवं विशाल व्यवहारिक ज्ञान प्रस्फुटित हुआ है। परिणक कुल में उत्पन्न होने एवं व्यारारिक सम्पर्क से उनके साहित्य में व्यापार सम्बन्धी उदाहरण भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। वैद्यक सम्बन्धी उदाहरण भी विपुल मात्रा में मिलते हैं । उदाहरणों के लिए उदाहरण कहीं भी नहीं पाए, वरन् विषय को स्पष्ट करने की दृष्टि से सहज प्रवाह में आए हैं। बे विषय के साथ घुलमिल गए हैं, अलग-अलग प्रतीत नहीं होते । उनके कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं :-- औषधि विज्ञान से सम्बन्धित उदाहरण
सिद्धान्त (१) जैसे वैद्य सब से पहिले (१) उसी प्रकार मोक्षमार्ग रोग का निदान करता है, रोग प्रकाशक में पहले संसार रोग का के लक्षण बताता है, रोगी को निदान व दुःख के लक्षण बता विश्वास में लेकर रोग की कर संसारी जीव को विश्वास में चिकित्सा करने की प्रेरणा लेकर दुःख दूर करने की प्रेरणा देता है एवं दवा और पथ्य का देते हुए ग्रहण-त्यागरूप उपाय निर्देश करता है।
बताया गया है। (२) जैसे वैध रोग दूर करना। (२) उसी प्रकार श्री गुरु रागादि चाहता है । अत: शीत सम्बन्धी छुड़ाना चाहते हैं। अतः जो रोग हो तो उष्ण औषधि देता है। रागादि को पर जान कर और प्राताप संबंधी रोग हो तो स्वच्छन्द हो जाते हैं, उनसे कहा शीत औषधि देता है।
जाता है तेरे ही हैं; और जो उन्हें अपना मान कर छोड़ना नहीं चाहते, उनसे कहा जाता है कि
१ मो० मा० प्र०, ३१,६५,१०९, १३७