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________________ गाशैली २४६ जो अंग जिस अंगतै जुरया है, तिसही तै जुरघा रहै है कि दुटि टूटिं अन्य अन्य अंगनिस्यौं जुरघा कर है । जो प्रथम पक्ष ग्रहेगा तो सूर्यादि गमन करे हैं, तिनिकी साथि जिन मुक्ष्म अंगनितें वह जुर है ते भी गमन करें । बहुरि उनको गमन करते वे सूक्ष्म अंग अन्य स्थूल अंगनित जुरे रहैं, बे भी गमन करें हैं सो ऐसे सर्व लोक अस्थिर होइ जाय । जैसे शरीर का एक अंग खीचें सर्व अंग स्वींचें जाय, तैसें एक पदार्थकों गमनादि करते सर्व पदार्थनि का गमनादि होय, सो भास नाहीं । बहुरि जो द्वितीय पक्ष ग्रहेगा, तो अंग टूटने से भिन्नपना होय ही जाय तब एकत्वपना कैसै रह्या ? तातें सर्वलोक का एकत्व कौं ब्रह्म मानना कैसे संभवै ? बहुरि एक प्रकार यह है जो पहले एक था, पीछे अनेक भयाबहार एक ही जाय तात एक है । जैसे जल एक था सो वासणानिमैं जुदा-जुदा भया बहुरि मिल तब एक होय । वा जैसे सोना का गदा एक था सो कंकरा-कुण्डलादि रूप भया बहरि मिलकरि सोना का गदा होय जाय । तैसे ब्रह्म एक था, पीछे अनेक रूप भया बहुरि एक होयगा तातें एक ही है । इस प्रकार एकत्व माने है तो जब अनेक रूप भया तव जयथा रह्मा कि भिन्न भया । जो जुरया कहेगा तो पूर्वोक्त दोष प्रावैगा | भिन्न भया कहेगा तो तिस काल तो एकत्व न रहा । बहरि जब सूवर्णादिककी भिन्न भा भी एक कहिए है सो तो एक जाति अपेक्षा कहिए है । सो सर्व पदार्थनि की एक जाति भासे नाहीं । कोऊ चेतन है, कोऊ अचेतन है, इत्यादि अनेकरूप हैं, तिनकी एक जाति कैसे कहिए ? बहुरि पहिले एक था पोछे भिन्न भया माने है, तो जैसे एक पाषारादि फूटि टुकड़े होय जाय हैं तैसे ब्रह्मके खण्ड होय गए, बहुरि तिनका इकट्ठा होना माने है तो वहाँ तिनिका स्वरूप भिन्न रहे है कि एक होइ जाय है। जो भिन्न रहे है तो तहाँ अपने-अपने स्वरूप करि भिन्न ही है पर एक होइ जाय है तो जड़ भी वेतन होइ जाय वा चेतन जड़ होइ जाय । तहाँ अनेक वस्तुनिका एक वस्तु भया तब काहू कालविर्षे अनेक वस्तु, काहू कालविर्षे एकवस्तु ऐसा कहना बनें । अनादि अनन्त एक ब्रह्म है ऐसा कहना बने नाहीं ।" ' मो० मा०प्र०, १४०-१४१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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