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________________ २४२ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तव कि मैंने जो स्थिति तुम्हारे रोग की बताई, क्या तुम अनुभव करते हो कि वह सत्य है ? रोगी के स्वीकारात्मक उत्तर देने पर व संतोष प्रगट करने पर उसे अपने द्वारा बताई गई चिकित्सा करने की सलाह देता है। उसी प्रकार जितनी भी अपने पाटक से पूछते हैं : "हे भव्य ! हे भाई ! जो तो संसार के दुःख दिखाए, ते तुझ विर्ष बीते हैं कि नाहीं सो विचारि । अर तू उपाय करै है ते झूठे दिखाए सो ऐसे ही हैं कि नाहीं सो बिचारि । अर सिद्धपद पाए सुख होय कि नाहीं सो विचारि । जो तेरे प्रतीति जैसे कही है तैसे ही आवै तौ तूं संसारतें छूटि सिद्धपद पावने का हम उपाय कहें हैं सो करि, विलम्ब मति करै । इह उपाय किए तेरा कल्याण होगा।" यहाँ बे मात्र पूछते ही नहीं प्रत्युत सलाह भी देते हैं कि देर मत कर, उपाय शीघ्र कर, रोग खतरनाक है और समय थोड़ा। जिसजिस प्रकार वैद्य कुपथ्य सेवन न करने के लिए सावधान करता है और साथ ही यह भी बताता है कि क्या-क्या कुपथ्य हैं, वैसे ही लेखक ने अनेक प्रकार के कुपथ्यों का वर्णन कर उनसे बचने के प्रति सावधान भी किया है। इस प्रकार 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' रूपक के रूप में लिखा गया है । औषधि सम्बन्धी उदाहरणों का बहुत और बारीकी से प्रयोग ग्रन्थ में यत्र-तत्र मिलता है। इससे मालूम होता है कि लेखक को औषधि-विज्ञान एवं चिकित्सा पद्धति का भी पर्याप्त ज्ञान और अनुभव था । उनकी शैली में समुचित तर्कों को सर्वत्र यथायोग्य स्थान प्राप्त है। वे किसी बात को मात्र कह देने में विश्वास नहीं करते हैं किन्तु वे उसे तर्क की कसौटी पर कसते हैं। वे स्वयं भी कोई बात बिना तर्क की कसौटी पर कसे स्वीकार नहीं करते । ये जिनाज्ञा को भी बिना परीक्षा किए मानने को तैयार नहीं । वे स्पष्ट करते हैं : "तातें परीक्षा करि जिन वचननिकौं सत्यपनो पहिचानि + मो० मा० प्र०, १०८
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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