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________________ मध ली २३७ बहुरि वह कहै है - एमैं है, तो महामुनि परिग्रहादिक चितवन का त्याग काहेकौं करें हैं। ताका समाधान - जैसे विकार रहित स्त्री कृशील के कारण परधरनि का त्याग कर. तैसे वीतराग परशाति राग-द्वप के कारण परद्रव्यनि का त्याग कर है। बहुरि जे व्यभिचार के कारण नाही, ऐसे पर घर जाने का त्याग है नाहीं । तैसें जे राग-द्वेषकों कारगण नाही, ऐसे परद्रव्य जानने का त्याग है नाहीं । बहुरि वह कहै है - जैसे जो स्त्री प्रयोजन जानि पितादिक के घमि जो जामो, विना प्रमोशन मिति पर जाना तो योग्य नाहीं । तैसे परगतिकौं प्रयोजन जानि सप्त तत्त्वनि का विचार करना। बिना प्रयोजन गुणस्थानादिक का विचार करना योग्य नाहीं। ताका समाधान - जैसे स्त्री प्रयोजन जानि पितादिक वा मित्रादिक के भी घर जाय तैसें परणति तत्त्वनि का विशेष जानने के कारण गुणस्थानादिक वा कर्मादिक की भी जाने । बहुरि तहाँ ऐसा जानना - जैसे शीलवती स्त्री उद्यम करि ती विट पुरुषनि के स्थान न जाय, जो परवश तहाँ जाना बनि जाय, तहाँ कुशील न सेवै ती स्त्री शीलवती ही है। तैसे वीतराग परगति उपाय करि तो रागादिक के कारण परद्रव्यनि विर्षे न लाग, जो स्वयमेव तिनका जानना होय जाय, तहाँ रागादिक न करें तो परगाति शृद्ध ही है। तातें स्त्री आदि की परीषह मुनिनक होय, तिनिकौं जानें ही नाही, अपने स्वरूप ही का जानना रहै है, ऐसा मानना मिथ्या है । उनको ' जानै ती है, परन्तु रागादिक नाहीं कर है। या प्रकार परद्रव्यकों जानते भी बीतराग भाव हो है, ऐसा श्रद्वान करना' ।" उक्त गद्यखण्ड में स्त्री का परघर जाना सम्बन्धी उदाहरण यद्यपि बहत लम्बा है, पर प्रत्येक पंक्ति में विषय क्रमबद्ध स्पष्ट होता चला गया है और निष्कर्ष स्पष्ट हो गया है । -- मो० मा०प्र०, ३१०-३१२ - -
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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