SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्तस्य "बहुरि क्षयोपशमतें शक्ति ती ऐसी बनी रहै अर परिणमन करि एक जीव के एक काल विर्ष एक विषय ही का देखना व जानना हो है । इस परिणमन ही का नाम उपयोग है । ... सो ऐसे ही देखिए है। जब सुनने वि उपयोग लग्या होय तब नेत्रनिके समीप तिष्ठता भी पदार्थ न दीसै, ऐसे ही अन्य प्रवृत्ति देखिए है। बहुरि परिणमन विर्षे शीघ्रता बहुत है ताकरि काहू काल विर्षे ऐसा मानिए है कि अनेक विषयनि का युगपत् जानना वा देखना हो है, सो युगपत् होता नाहीं, क्रम ही करि हो है । संस्कार बलतं तिनिका साधन रहै है ! जैसे काम में नेश के लोग मोलद हैं. पुनरी एक है सो फिर शीघ्र है ताकरि दोऊ गोलकनि का साधन कर है, तसे ही इस जीव के द्वार तो अनेक हैं पर उपयोग एक है सो फिर शीन है ताकरि सर्व द्वारनिका साधन रहै है।" उपयोग चाहे कहीं रहे, अपने पर या दूसरे पर, यदि वह रागद्वेष की उत्पत्ति का कारण नहीं बनता, तो कोई हानि नहीं। इस बात को वे इस प्रकार स्पष्ट करते हैं : __ "बहुरि वह कहै ऐसे है, तो परद्रव्य तें छुड़ाय स्वरूप वि4 उपयोग लगावने का उपदेश काहैकौं दिया है ? ___ताका समाधान - जो शुभ-अशुभ भावनिकी कारण परद्रव्य है, तिन विचे उपयोग लग जिनके राग-द्वेष होई पात्र हैं, अर स्वरूप चितवन करै तो राग-द्वेष्प घट है, ऐसे नीचली अवस्थावारे जीवनिकों पूर्वोक्त उपदेश है। जैसें कोऊ स्त्री धिकार भाव करि काहू के घर जाय थी, ताको मनै करी-पर घर मति जाब, घर मैं बैठि रहौ । वहुरि जो स्त्री निर्विकार भावकरि काह के घर जाय 'यथायोग्य प्रवत्त तो कि दोष है नाहीं । तैसे उपयोगरूप परराति राग-द्वेष भावकरि परद्रव्यनि विष प्रवत्तं थी, ताकी मन करी-परद्रव्यनि विपं मति प्रवत्त, स्वरूपविर्षे मग्न रहीं । बहुरि जो उपयोगरूप परणति वीतराग भाव करि परद्रव्यकौं जानि यथायोग्य प्रवत्त, तो किछू दोष है नाहीं ।" 1 मो. मा०प्र०, ५२
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy