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गद्य शैली
२३५ सो उनका परिणमन के अनुसारि ज्ञान का परिणमन होय है । ताका उदाहरण :
___ "जैसैं मनुष्यादिककै बाल वृद्ध अवस्थाविर्षे द्रव्य इन्द्रिय बा मन शिथिल होय तब जानपना भी शिथिल होय । वहुरि जैसे शीत वायु आदि के निमित्तते स्पर्शनादि इन्द्रियनि के वा मन के परमाणु अन्यथा होय तब जानना न होय वा थोरा जानना होय वा अन्यथा जानना होय । बहुरि इस ज्ञानकै अर वाद्य द्रव्यानक भी निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध पाइये है । ताका उदाहरण :--
__"जैसे नेत्र इन्द्रियकं अंधकार के परमाणु वा फूला अादिक के परमारगु बा पाषाणादिक के परमारण आदि प्राड़े आ जाएँ तो देखि न सके । बहुरि लाल कांच आड़ा आवै तो सब लाल ही दीस, हरित काँच पाड़ा प्रावै तौ हरित ही दीसे, ऐसे अन्यथा जानना होय । बहुरि दूरबीन चसमा इत्यादि यात्रा प्रावे तो बहुत दोसने लगि जाय । प्रकाश, जल, हिलव्धी कांच इत्यादिक के परमाणु आड़े आ तो भी जैसा का तैसा दीखें। ऐसे अन्य इन्द्रिय वा मनकं भी यथासंभव निमित्त-नैमित्तिकपना जानना'।"
उक्त गद्यांश में सिर्फ नेत्र इन्द्रिय के विषय को चश्मा, दुरवीन, अंधकार, फूला, पापारण, प्रकाश, जल, हिलव्बी काँच आदि के उदाहरणों से स्पष्ट किया है तथा इसमें भी चश्मे का कांच लाल, हरा, मैला आदि विश्लेषण द्वारा भी विषय की गहराई तक पहुँचाने का यत्न किया है। साथ ही यह निर्देश भी दिया है कि जितना सांगोपांग विश्लेषण लेखक ने नेत्र इन्द्रिय सम्बन्धी किया है, पाठक का कर्तव्य है कि वह बाकी चार इन्द्रियों और मन का भी इसी तरह विश्लेषण करके प्रतिपाद्य को समझने का यत्ल करे।
___ इसी प्रकार सूक्ष्म विचारों को समझाने के लिए उन्होंने लौकिक उदाहरणों का सफल प्रयोग किया है । क्षयोपशम ज्ञान द्वारा एक समय में एक ही वस्तु को जाना जा सकता है, अनेक को नहीं। इस विषय को वे इस प्रकार स्पष्ट करते हैं :१ मो० मा० प्र०, ४८-४६