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________________ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व विषय का विस्तार से वर्णन करने के बाद वे उसका अंत में समाहार कर देते हैं जिससे विषय स्पष्ट हो जाय । क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति आदि कषायों का एवं उनके बेग में होने वाली जीव की अवस्था का विस्तृत वर्णन करने के उपरान्त वे उनका इस प्रकार सारांश देते हैं : "क्रोधवि तो अन्य का बुरा करना, मानविर्षे औरनिर्या नीचा करि पाप ऊँचा होना, मायाविर्षे छलकरि कार्य सिद्धि करना, लोभ विर्षे इष्ट का पावना, हास्यविषं विकसित होने का कारण बन्या रहना, रसिविर्षे इष्ट संयोग का बना रहना, परतिविष अनिष्ट संयोग का दूर होना, जोगटि सेन को गाविना, भयवि भय का कारण मिटना, जुगुप्सा विषं जूगुप्सा का कारण दुरि होना, पुरुषवेद विर्षे स्त्रीस्यों रमना, स्त्रीवेद त्रिय पुरुषस्यों रमना, नपुंसक वेदवि दोऊनिस्यों रमना, ऐसे प्रयोजन पाइए हैं।" विषय को स्पष्ट करने के लिए स्वयं शंकाएँ उठा-उठा कर उनका समाधान प्रस्तुत करना उनकी शैली की अपनी विशेषता है । वे विषय प्रतिपादन इस ढंग से करते हैं कि पूर्वप्रश्न के समाधान में अगला प्रश्न स्वयं उभर पाता है । पढ़ते-पढ़ते पाठक के मस्तिष्क में जो प्रश्न उठता है वह उसे अगली पंक्ति में लिखा पाता है। इस प्रकार विषय का विश्लेषण क्रमवद्ध होता चला जाता है। वे किसी भी विषय को तब तक नहीं छोड़ते हैं जब तक कि उसका मर्म सामने न या जाय । प्रथमानुयोग के अध्ययन का निषेध करने वाले को लक्ष्य करके वे लिखते हैं : "केई जीव कहै हैं-- प्रथमानुयोग विर्षे शृंगारादिक का बा संग्रामादिक का बहुत कथन करें, तिनके निमित्ततं रागादिक बधि जाय, ताते ऐसा कथन न करना था। ऐसा कथन सुनना नाहीं। ताकौं कहिए है - कथा कहनी होय तत्र ती सर्व ही अवस्था का कथन किया चाहिए । बहुरि जो अलंकारादि करि बधाय कथन करें हैं सौ पंडितनिके वचन युक्ति लिए ही निकसैं ।। • मो० मा० प्र०,०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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