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पंडिल टोडरमल : व्यक्तित्व और कसत्व इस प्रकार अनादिचक्र चल रहा है । इसी का नाम संसार है। शरीर सहित आत्मा ही वीतराग-विज्ञान की प्रयोगशाला है। शरीरादि जड़ पदार्थों की उपस्थिति में ही चेतन तत्त्व की अनुभूति वीतराग-विज्ञान का मूल लक्ष्य है। अतः इसे भेद-विज्ञान भी कहा गया है । भेद-विज्ञान अर्थात् जड़ और चेतन की भिन्नता का ज्ञान । यद्यपि प्रात्मा का वैज्ञानिक (भौतिक) निपोषण तो संग्ज नहीं तथापि उसकी अनुभूति संभव है, इसी अर्थ में वह विज्ञान है । उसका आधार वीतरागता है क्योंकि प्रात्मानुभूति वीतराग भाव से ही संभव है, अतः वह वीतराग-विज्ञान है। पंडित टोडरमल ने मोक्षमार्ग में वीतरागता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र तीनों की परिभाषा करते हुए उन्होंने निष्कर्ष रूप में वीतरागता को प्रमुख स्थान दिया है । बहुत विस्तृत विश्लेषण करने के बाद वे लिखते हैं :
"तातें बहुत कहा कहिए, जैसे रागादि मिटावनेका श्रद्धान होय सो ही श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । बहुरि जैसे रागादि मिटावनेका जानना होय सो ही जानना सम्यग्ज्ञान है । बरि जैसे रागादि मिटें सो ही आचरण सम्यक्तारित्र है । ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है।"
रागादि भाव के अभाव का नाम ही वीतराग भाव है । वीतराग भाव राग-द्वेष के अभावरूप अात्मा की वास्तविक स्थिति है । उसका विज्ञान ही वीतराग-विज्ञान है । वीतराग-विज्ञान ही निज भाव है, वह हो मोक्ष मार्ग है, और वह मिथ्यात्य के प्रभाव से प्रगट होता है । यदि वीतराग-विज्ञान के प्रकाश से वीतराग-विज्ञानरूप निज भाव की प्राप्ति हो जाये तो सम्पूर्ण दुःखों का अभाव सहज ही हो जाता है । मिथ्याभाव
इस प्रात्मा के समस्त दुःखों का कारण एक मिथ्याभाव (मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र) ही है। यही संसाररूपी वृक्ष की जड़ है । इसका नाश किए बिना आत्मानुभूति प्राप्त नहीं हो
मो० मा० प्र०,३१३