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वर्ण-विषय और बार्शनिक विचार
२१७ सकती है। इस मिथ्यात्व भाव की पुष्टि कुदेव, कुगुर और कुशास्त्र के संयोग से होती रहती है।
यही कारण है कि पंडित टोडरमल ने मिथ्याभावों और उनके कारणों का विस्तृत वर्णन किया है। उन्हें उन्होंने दो भागों में विभाजित किया है, अग्रहीत और गृहीत 1 मिथ्याभाव तीन प्रकार के होते हैं। मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र । इस प्रकार ये कुल मिलाकर छह हुए । इन्हें यों रखा जा सकता है :
मिश्याभाव
मगृहीत
गृहीत
मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मिथ्याचारित्र मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान एक तरीका यह भी हो सकता है :
मिथ्याचारित्र
मिध्याभाव
मिथ्यादर्शन
मिथ्याज्ञान
मिथ्याचारित्र
प्रगृहीत
गृहीत अगृहीत
गृहीत प्रगृहीत
गृहीत
१ मो० मा०प्र० (क) इस भव के सब दुःखनिके, कारण मिथ्या भाव । पृ० १०६ (ख) इस भवतरु का मूल इक, जानहु मिथ्या भाव । पृ. २८३ (ग) मिथ्या देवादिक भजें, हो है मिथ्या भाव ।
तज तिनको सांचे भजी, यह हित हेतु उपाय ॥ पृ. २४७