SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वयं-विषय और पार्शनिक विचार २१५ अभाव भया नाही, तैसें प्रगट किए भी जै मनुष्य ज्ञानरहित हैं वा मिथ्यात्वादि विकार सहित हैं तिना मोक्षमार्ग सूझता नाही, तो अन्धकै तौ भोक्षमा प्रकाशकंपने का प्रभाव भया नाहीं । वीतराग-विज्ञान (सम्यकभाव) पंडित टोडरमल ने मंगलाचरण में पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करने के पूर्व 'वीतराग-विज्ञान' को नमस्कार किया क्योंकि पंचपरमेष्ठी बनने का उपाय वीतराग-विज्ञान ही है। वीतराग-विज्ञान केबल विज्ञान ही नहीं है, वह प्रात्मविज्ञान भी है, इसीसे मंगलमय और मंगलकरण है | मंगल करण इसलिए क्योंकि वह स्वयं मंगलस्वरूप है तथा जो स्वयं मंगलमय हो, वहीं मंगलकरण हो सकता है। पंचपरमेष्ठी पद इसी वीतराग-विज्ञान के परिणाम हैं। ___पंडित टोडरमल के लिए मोक्षमार्ग मात्र ज्ञान नहीं वरन् आत्मविज्ञान है, जिसे वे वीतराग-विज्ञान कहते हैं। चूंकि प्रात्मा अमूर्त हैं, निराकार है, ज्ञानदर्शन स्वरूप है, अतः उसका बैज्ञानिक (भौतिक) विश्लेषण सम्भव नहीं है । वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया की जरूरत होती है, उसमें किसी भी मान्यता या सिद्धान्त को तब तक सिद्ध नहीं माना जाता, जब तक वह तथ्यों को प्रायोगिक विधि से सिद्ध नहीं हो जाता। फिर भी किसी पदार्थ की सिद्धि के लिए कोई न कोई सिद्धान्त की कल्पना करनी ही पड़ती है । जैन दर्शन का स्थापित सिद्धान्त है कि संसार में जड़ और चेतन ये दो मुख्य तत्व हैं। वह दोनों की अनन्तता में विश्वास करता है। अनादिकाल से चेतन और जड़ (कर्म) संयोगरूप से सम्बन्धित हैं। कर्मोदय में जीव के रागादि विकार भाव होते हैं और उन भावों से नवीन कर्म बन्ध होता है। ' मो० मा० प्र०, २८-२६ २ मंगलमय मंगलकरण, वीतराग विज्ञान | नमी ताहि जात भये, अरहतादि महान ।। -मो. मा० प्र०, १
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy