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________________ २१४ पंडित टोडरमल : भ्यक्तित्व और कर्तत्व मोक्षमार्ग प्रकाशक उनका श्रादर्श शास्त्र है । उनका शास्त्र लिखने का उद्देश्य उस समय के मंदज्ञान वाले जीवों का भला करना था। इसीलिए उन्होंने धर्मबुद्धि से भाषामय ग्रंथ की रचना की है। वे लिखते हैं कि यदि कोई इससे लाभ नहीं उठाता है तो इनकी कृति का कोई दोष नहीं है, बल्कि लाभ न लेने वाले का प्रभाग्य है। जैसे एक दरिद्री चिन्तामणि को देख कर भी नहीं देखना चाहता और कोढ़ी उपलब्ध अमृत का पान नहीं करता तो इसमें दोष दरिद्री और कोड़ी का ही है, चिन्तामशिनौर अमृत का नहीं। मोक्षमार्ग प्रकाशक की उन्होंने दीपक से तुलना की है । संसार को भयंकर अटवी बताते हुए वे लिखते हैं कि इसमें अज्ञान-अंधकार व्याप्त हो रहा है, अत: जीव इससे बाहर निकलने का रास्ता प्राप्त नहीं कर पाते हैं और तड़फ-तड़फ कर दुःख भोगते रहते हैं। उनके भले के लिए तीर्थंकर केवली भगवानरूपी सूर्य का प्रकाश होता है । जब सूर्यास्त हो जाता है तो प्रकाश के लिए दीपकों की आवश्यकता होती है। अत: जब केवलीरूपी सूर्य अस्त हो गया तो ग्रन्थरूपी दीपक जलाये गए। जैसे दीपकों से दीपक जलाने की परम्परा चलती रहती है, उसी प्रकार ग्रंथों से ग्रंथनिर्माण को परम्परा चलती रही। उसी परम्परा में यह मोक्षमार्ग प्रकाशक भी मुक्ति के मार्ग पर प्रकाश डालने वाला एक दीपक है। 1 यद्यपि मार्ग पर कितना ही प्रकाश क्यों न हो, पर आँख वाले को ही दिखाई देता है, अन्धे को नहीं; तथापि अन्धे को दिखाई नहीं देने से प्रकाश अन्धकार नहीं हो जाता, प्रकाश तो प्रकाश ही रहता है । वे बहते हैं कि यदि किसी को मोक्षमार्ग दिखाई न दे तो मोक्षमार्ग प्रकाशक के प्रकाशकत्व में कोई अन्तर नहीं आता। उन्हीं के शब्दों में : __ "बहुरि जैसे प्रकाश भी नेत्र रहित वा नेत्र विकार सहित पुरुष हैं तिनिफॅ मार्ग सूझता नाहीं तो दीपककै तौ मार्गप्रकाशकपने का , मो० मा प्र०, २६-३० २ वही, २८
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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