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________________ २०६ रूप में स्वीकार करे और कहे कि मैं विशेष ज्ञानी से पूछ कर बताऊँगा श्रथवा श्रोता ही विशेष ज्ञानी से पूछ ले और उसे भी बताए। इससे सिद्ध है कि उनके अनुसार वक्ता में जितनी प्रमाणिक बात बताने की ईमानदारी एवं कुशलता होनी चाहिए, श्रोता में भी उतनी ही जिज्ञासा होनी चाहिए, के अभिमान या पाण्डित्य के झूठे प्रदर्शन से एवं श्रोता की सजगता के अभाव में प्रकरण विरुद्ध अर्थ की सम्भावना बनी रहती है। उन्होंने उन्हीं अर्थों का विरोध किया जो अभिमान या पाण्डित्य के थोथे प्रदर्शन से किये गए हों, लेकिन जहाँ वक्ता श्रपने अध्ययन से प्रसंगों की नई व्याख्या करता है और प्रचलित मान्यतानों को काटता है तो उसे इसकी स्वतन्त्रता है । कहना न होगा कि पंडितजी ने इस स्वतन्त्रता का भरपूर उपयोग किया है, परन्तु ऐसा करते समय नम्र शब्दों में यह भी कह दिया है कि मैं जो कुछ समझ सका वह मैंने लिखा है, बाकी सर्वज्ञ जानें | क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में लगने वाले दोपों की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं : rot विषय और दार्शनिक विचार * " तातं समल तत्त्वार्थ श्रद्धान होय सो क्षयोपशम सम्यक्त्व है । यहां जो मल लागे है, ताका तारतम्य स्वरूप तो केवली जानें हैं, उदाहरण दिखावने के अथि चलमलिनयमापना कया है । तहाँ व्यवहार मात्र देवादिक को प्रतीति तो होय परन्तु अरहन्त देवादि विष यह मेरा है, यह अन्य का है, इत्यादि भाव सो चलपना है । शंकादि मल लागे है सो मलिनपना है । यहु शांतिनाथ शांति का कर्ता है इत्यादि भाव सो अगाढ़पना है । सो ऐसे उदाहरण व्यवहारमात्र दिखाए परन्तु नियमरूप नाहीं । क्षयोपशम सम्यक्त्व विषं जो नियमरूप कोई मल लागे है सो केवली जाने हैं।" उन्होंने अपना मत सर्वत्र सविनय किन्तु खुल कर व्यक्त किया है । जैसे : (१) "बहुरि जैसे कहीं प्रमाणादिक किछू का होय, सोई तहाँ न मानि लेना, तहाँ प्रयोजन होय सो जानना । ज्ञानाव विषे ऐसा १ मो० मा० प्र०, ४३६
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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